Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

Previous | Next

Page 61
________________ तंदुलवेयालियपइण्णय 'जायमित्तस्स जंतुस्स जा सा पढमिया दसा। न तत्थ सुक्ख दुवखं वा छुहं जाणंति बालया १ ॥४६॥ बीयं च दसं पत्तो नाणाकीडाहिं कीडई। न य से कामभोगेसु तिव्वा उप्पज्जए मई २ ॥४७॥ तइयं च दसं पत्तो पंच कामगुणे नरो। समत्थो भुंजिउं भोगे जइ से अत्थि घरे धुवा ३ ॥४८॥ चउत्थी उ बला नाम जं नरो दसमस्सिओ। समत्थो बलं दरिसेउं जइ सो भवे निरुवद्दवो ४ ॥४९॥ . पंचमी उ दसं पत्तो आणुपुव्वीइ जो नरो। समत्थो अत्थं विचितेउं कुडुंब चाभिगच्छई ५ ॥५०॥ छट्ठी उ हायणी नाम जं नरो दसमस्सिओ। विरज्जइ काम-भोगेसु, इंदिएसु य हायई ६॥५१॥ सत्तमी य पवंचा उ जं नरो दसमस्सिओ। निठुभइ चिक्कणं खेलं खासई य खणे खणे ७॥५२॥ संकुइयवलीचम्मो संपत्तो अमि दसं। नारीणं च अणिट्ठो उ जराए परिणामिओ ८॥५३॥ नवमी मुम्मुही नामं जं नरो दसमस्सिओ। जराघरे विणस्संते जीवो वसइ अकामओ ९ ॥५४॥ हीण-भिन्नसरो दीणो विवरीओ विचित्तओ। दुब्बलो दुक्खिओ सुयइ" संपत्तो दसमि दसं १० ॥५५॥ : १. सा० आदर्श इत आरभ्य गाथात्रयमित्थंरूपं विकृतं मूले आदृतं दृश्यते तथाहि जायमित्तस्स जंतुस्स जा सा पढमिया दसा। न तत्थ भुंजिउं भोए जइ से अस्थि घरे धुवा १ ।। बीयाए किड्डया नामं जं नरो दसमस्सिओ। किड्डारमणभावेण दुलहं गमइ नरभवं २ ॥४७॥ तइया य मंदया नाम, जं नरो दसमस्सिओ । मंदस्स मोहभावेणं इत्थीभोगेहि मुच्छिो ३ ॥४८॥ मया तु प्राचीनेष्वादशेषु सर्वेष्वप्युपलब्धो वृत्तिकृता व्याख्यातश्च सुव्यवस्थितः पाठो मूले आदृतोऽस्ति ।। २. सुहं दुक्खं वा न हु जाणंति सं० । एतत्साठभेदानु. सारेणैव वृत्तिकृता व्याख्यातमस्ति, किञ्च नायं पाठभेदः सम्यक् समीचीनोऽस्तीति ।। ३. ब्वीय जो सं० ॥ ४. °ज्जई य कामे, इंदि सा. वृ० ॥ ५. वसइ पु० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114