Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 65
________________ तंदुल वेयालियइणयं ( अंतराय बहुले जीविए पुण्णकिच्चकरणोवएसो ) पुणाई खलु आउसो ! किच्चाई करणिजाई पोइकराई वन्नकराई धणकराई कित्तिकराई । नो य खलु आउसो ! एवं चिंतेयव्वं - एसिति खलु बहवे समया आवलिया खणा आणापाणु थोवा लवा मुहुत्ता दिवसा अहोरत्ता पक्खा मासा रिऊ अयणा संवच्छरा जुगा वाससया वाससहस्सा वाससय सहस्सा, वासकोडीओ वासकोडाकोडीओ, जत्थ णं अम्हे बहूई सीलाइ वयाइं गुणाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं पडिवज्जिस्सामो पट्ठविस्सामो करिस्सामो, ता किमत्थं आउसो ! नो एवं चितेयन्वं भवइ ? - अंतराइयबहुले खलु अयं जीविए, इमे य बहवे वाइय- पत्तिय-सिभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका फुसंति जीवियं ॥ ६४ ॥ २२ ( जुगलिय- अरिहंत - चक्कवट्टिआईणं देहाइइड्ढीओ ) आसीय खलु आउसो ! पुव्वि मणुया ववगयरोगाऽऽयंका बहुवाससयसहस्सजीविणो । तं जहा - जुयलधम्मिया अरिहंता वा चकवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा चारणा विबाहरा ।। ६५ ।। ते णं मणुया अणतिवरसोम - चारुरूवा भोगुत्तमा भोगलक्खगधरा सुजायसव्वंगसुंदरंगा रत्तुप्पल- 'पउमकर-चरणको मलंगुलितला नग-गगरमगर-सागरचक्कंकधरंकलक्खणंकियतला सुपइट्ठियकुम्मचारुचलणा अणुपुव्विसुजाय-पीवरंगुलिया उन्नय-तणु-तब- निद्धनहा संठिय-सुसिलिट्ठगूढगोल्फा एणी - कुरुविंदावत्तवट्टाणुपुव्विजंघा " सामुग्गनिमग्गगूढजाणू गवससणसुजायसन्निभोरू वरवारणमत्ततुल्लविक्कम-विलासियगई सुजायवरतुरयगुज्झदेसा आइन्नहउ व्व निरुवलेवा पमुइयवरतुरग सोअइरेगवट्टिय कडी साहयसोणंद - मुसलदप्पण - निगरियवर कणगच्छरु सरिस - वरवइरवलियमज्झा १. राई घणकराई जसकराई कित्ति सं० पु० । वृत्तिकृता उपरिस्थापित एव पाठो व्याख्यातोऽस्ति ॥ २. एसंति सा० ॥। ३. अत्र श्रीमता वृत्तिकृता अतिवसोम इति अणतिवरसोम' इति च पाठद्वयं व्याख्यातमस्ति || ४. पत्तमंतक' पु० ।। ५ °विद-वत्त वट्टाणुपुन्नजंघा वृ० ।। ६. मत्तपदं वृत्तो व्याख्यातं नास्ति ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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