Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 70
________________ तंदुलवैचारिकप्रकीर्णक २७. समान दुंदुभि युक्त, नाक गरूड़ की चौंच के समान लम्बी, सीधी और उन्नत, मख विकसित कमल के समान, आंखें पद्म कमल की तरह विकसित, धवल एवं पत्रल भौंहे थोड़ी नीचे झुकी हुई धनुष के समान सुन्दर, पंक्तियुक्त, काले मेघ के समान उचित मात्रा में लम्बी और सुन्दर, कान कुछ शरीर से चिपके हुए, प्रमाण युक्त, गोल और आसपास का भाग मांसल युक्त एवं पुष्ट, ललाट अर्ध चन्द्रमा के समान संस्थित, मुख परिपूर्ण चन्द्रमा के समान सौम्य, मस्तक छत्र के आकार. के समान उभरा हुआ, सिर का अग्रभाग मुद्गर के समान, सुदृढ़ नसों से आबद्ध, उन्नत लक्षणों से युक्त, एवं उन्नत शिखर युक्त सिर को. चमड़ी अग्नि में तपाये हुए स्वच्छ सोने के समान लाल रंग से युक्त, सिर के बाल शाल्मली (समल) वृक्ष के फल के समान धने, प्रमाणोपेत, बारीक,कोमल, सुन्दर, निर्मल, स्निग्ध, प्रशस्त लक्षणों से युक्त, सुगन्धित, सुन्दर, भुजभोजक रत्न, नीलमणी एवं काजल के समान काले. हर्षित भ्रमरों के झुण्ड की तरह समूह रूप, धुंधराले और दक्षिणावर्त.. (होते हैं) । (वे) उत्तम लक्षणों, व्यंजनों, गणों से परिपूर्ण प्रमाणोपेत. मान-उन्मान, सर्वांग सुन्दर, चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति वाले,. सुन्दर, प्रियदर्शी, स्वाभाविक शृंगार के कारण सुन्दर रूप वाले, प्रासाद गुणयुक्त, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप ( होते हैं)। (६७) वे मनुष्य अक्षरित स्वर वाले, मेघ के समान स्वर वाले, हंस के समान स्वर वाले, कौंञ्च पक्षी के समान स्वर वाले, नन्दी स्वर वाले, नन्दी घोष वाले, सिंह के समान स्वर वाले, सिंह-घोष वाले, दिशा-- कुमार देवों के घण्टे के समान स्वर एवं घोष वाले, उदधि कुमार देवों के घण्टे के समान स्वर एवं घोष वाले, शरीर में वायु के अनुकूल वेग. वाले, कपोत के समान स्वभाव वाले, शकुनि पक्षी के समान निर्लेप. मलद्वार वाले, पीठ एवं पेट के नीचे सुगठित दोनों पाव एवं उचित परिमाण जंघाओं वाले, पद्म कमल या नील कमल के समान. सुगन्धित मुख वाले, तेजयुक्त, निरोग, उत्तम, प्रशस्त, अत्यन्त श्वेत, अनुपम, जल्ल-मल्ल, दाग, पसीने एवं रज से रहित शरीर वाले, अत्यन्त स्वच्छ, प्रभा से उद्योतित अंग वाले, वज्रऋषभ-नाराच संहनन वाले, समचतुरस्रसंस्थान में संस्थित एवं छः हजार धनुष ऊँचाई वाले कहे गये हैं। हे आयुष्मान् श्रमण ! वे मनुष्य दो सौ छप्पन पीठ की हडिडयों से युक्त कहे गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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