Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit SamsthanPage 84
________________ तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक [ शरीर स्वरूप ] भूख, (१०८) हे आयुष्मान् ! यह शरीर, इष्ट, प्रिय, कान्त, मनोज्ञ, मनोहर, मनाभिराम दृढ़ विश्वसनीय, सम्मत, अभीष्ट, प्रशंसनीय, आभूषणों एवं रत्नकरण्डक के समान अच्छी तरह से गोपनीय, कपड़े को पेटी एवं तेल पात्र की तरह अच्छी तरह से रक्षणीय, सर्दी, गर्मी, प्यास, चोर, दंश, मशक, वात, पित्त, कफ, सन्निपात आदि रोगों के संस्पर्श से बचाने योग्य माना जाता है । ( किन्तु यह शरीर वस्तुतः) अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत वृद्धि एवं ह्रास को प्राप्त, विनाशशील है अतः पहले या बाद में, इसका अवश्य ही परित्याग करना होगा । (१०९) हे आयुष्मान् ! इस शरीर में पीठ की हड्डियों में क्रमशः अठारह संधियाँ हैं । ( उनमें से ) करण्डक के आकार की बारह पसली की हड्डियाँ होती हैं । (शेष ) छः हड्डियाँ मात्र पार्श्व भाग को घेरती हैं जो कड़ा कही जाती हैं। मनुष्य की कुक्षि एक वितस्ति' परिमाण युक्त और गर्दन चार अंगुल परिमाण की होती है । उसकी जीभ चार पल, आँख दो पल की होती है, हड्डियों के चार खण्डों से युक्त सिरोभाग होता है । उसके बत्तीस दाँत, सात अंगुल परिमाण जीभ, साढ़े तीन पल का हृदय, पच्चीस पल का कलेजा होता है । उसकी होती हैं । जो पाँच वाम परिमाण की कही गयी है । दो आँ इस प्रकार है-स्थूल आँत और पतली आँत । उसमें से जो स्थूल आंत है उससे मलनिस्सरित होता है और उसमें जो सूक्ष्म आँत है उससे मूत्र निस्सरित होता है। दो पार्श्व कहे गये है एक वाम पार्श्व दूसरा दक्षिण पाखं । इसमें से जो बाँया पार्श्व है वह सुख परिणाम वाला है और जो दाँया पार्श्व है वह दुःख परिणाम वाला है (अर्थात् बाँया पार्श्व सुखपूर्वक अन्न पचाता है और दाँया दुःखपूर्वक) । हे आयुष्मान् ! इस शरीर में एक सौ साठ संधियाँ हैं । एक सौ सात मर्मस्थान हैं, एक दूसरे से जुड़ी हुई तीन सौ हड्डियाँ हैं, नौ सौ नसें (स्नायु) हैं, सात सौ शिराएँ (नस) हैं, पाँच सौ मांस पेशियाँ हैं, - नौ धमनियाँ हैं, दाढ़ी मूंछ के रोमों के अतिरिक्त निन्यानवें लाख रोमकूप होते हैं, दाढी मूंछ के रोमों सहित साढ़े तीन करोड़ रोमकूप होते हैं । १. बारह अंगुल का परिणाम विशेष । २. लगभग ५० ग्राम का एक पल होता है । ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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