Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 86
________________ तंदुलवैचारिकप्रकीर्णक (११०) हे आयुष्मान् ! इस शरीर में १६० शिराएँ नाभि से निकलकर मस्तिष्क की ओर जाती हैं जिन्हें रसहरणी कहते हैं। ऊर्ध्वगमन करने वाली (उन शिराओं से) चक्ष , श्रोत, घ्राण, जिह्वा को क्रियाशीलता प्राप्त होती है और इनके उपघात से चक्षु, श्रोत, प्राण,, जिह्वा की क्रियाशीलता नष्ट हो जाती है। हे आयुष्मान् ! इस शरीर में १६० शिराएँ नाभि से निकल कर नीचे की ओर जाती हुई पैर के तल तक पहुँचती है, इनसे जंघा को क्रिया-शीलता प्राप्त होती है। इन शिराओं के उपघात से सिर में पीड़ा, अद्धसिर में पीड़ा, मस्तक में शूल और आँखें अन्धी हो जाती हैं। हे आयुष्मान् ! इस शरीर में १६० शिराए नाभि से निकल कर तिरछी जाती है. जो हाथ तल तक पहुंचती है। इनके निरूपधात से बाहु को क्रिया-- शीलता प्राप्त होती है और इनके उपघात से पार्श्व वेदना, पृष्ठ वेदना, कुक्षिपीड़ा और कुक्षिशूल होता है। हे आयुष्मान् ! इस. मनुष्य की १६० शिराएँ नाभि से निकलकर नीचे की ओर जाकर गुदा में मिलती हैं। इनके निरूपधात से मल, मूत्र और वायु उचित मात्रा में होते हैं और इनके उपघात से मूत्र, मल और बायु के निरोध से (मनुष्य) बबासीर से क्षुब्ध हो जाते हैं और पीलिया नामक रोग हो जाता है। (१११) हे आयुष्मान् ! इस मनुष्य के कफ को धारण करने वाली २५: शिराएँ, पित्त को धारण करने वाली २५ शिराएँ और वीर्य को धारण करने वाली १० शिराएँ (होती हैं)। पुरुष के ७०० शिराएँ, स्त्री के तीस कम (अर्थात् ६७०) और नपुंसक के बीस कम (अर्थात् ६८० शिराएँ होती हैं)। (११२) हे आयुष्मान् ! इस मनुष्य के (शरीर में) रक्त का वजन एक आढक,' वसा का आधा आढक, मस्तुलिङ्ग का (फुस्फुस) एक-प्रस्थ, मूत्र का एक आढक, पुरीस का एक प्रस्थ, पित्त का एक कुडव', कफ का एक कुड़व, शुक्र का आधा कुडव (परिमाण होता है)। इनमें जो दोषयुक्त होता है उसमें वह परिप्रमाण अल्प भी होता है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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