Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit SamsthanPage 96
________________ संदुलवैचारिकप्रकीर्णक (१४५) (मृत शरीर के ) नेत्र को पक्षी चोंच से काटते हैं, लता की तरह भुजा फैली रहती है, आँत बाहर निकाल ली जाती है और खोपड़ी भयंकर (दिखाई पड़ती) है। (१४६) मृत शरीर पर मक्खियाँ भिन-भिन शब्द करती रहती है। सड़े हए मांस से सुल-सुल की आवाज निकलती रहती है, उसमें उत्पन्न कृमि समूह से मिस-मिस की आवाज और आँतड़ियों से थिव-थिव शब्द होता रहता है। इस प्रकार यह बहुत ही बीभत्स दिखाई देता है। (१४७) (मरने के बाद) प्रकट पसलियों वाले विकराल, सूखी सन्धियों से . यक्त, चेतना रहित शरीर की अवस्था को जानो। .. . (१४८) नव-द्वारों से अशुचि को निकालने वाले, गले हुए कच्चे घड़े के समान इस शरीर के प्रति निर्वेद (वैराग्य) भाव धारण करो। (१४९) दो हाथ, दो पैर और सिर धड़ से जुड़े हुए हैं। यह मलिन मल का कोष्ठागार है। इस विष्ठा को तुम क्यों ढोते फिरते हो। (१५०) ऐसे रूपवाले (शरीर को) राजपथ पर अवतीर्ण देखकर (प्रसन्न होते हो) और पर-गन्ध (अन्यपदार्थों की गन्ध) से सुगन्धित गंध को अपनी गन्ध मानते हो। (१५१) (यह मनुष्य) गुलाब, चम्पा, चमेली, अगर, चन्दन एवं तरूष्क की गन्ध को अपनी गन्ध मानता हुआ प्रसन्न होता है। (१५२) तेरा मुख मुखवास की गंध से सुवासित है, अंग प्रत्यंग अगर की गन्ध से युक्त है। केश स्नानादि के समय लगाये गये सुगंधित द्रव्यों से सुगंधित है, तो बताओ तुम्हारी अपनी गन्ध क्या है ? . (१५३) हे पुरुष ! आँखों का मल, कान का. मल, नासिका का मल, श्लेष्म, अशुचि और त्र-ये ही तो तेरी अपनी गंध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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