Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 77
________________ ३४ तंदुलवेयालियपइण्णयं ववहारगणिय दिह्र 'सुहुमं निच्छयगयं मुणेय व्वं । जइ एयं न वि एवं विसमा गणणा मुणेयव्वा ।।८१॥ (समयाइकालपमाणसरूव) कालो परमनिरुद्धो अविभज्जो तं तु जाण समयं तु । समया य असंखेज्जा हवंति उस्सास-निस्सासे ॥८२॥ हट्ठस्स अणवगल्लस्स निरुवकिट्टस जंतुणो। एगे ऊसास-नीसासे एस पाणु त्ति वुच्चइ ।।८।। सत्त पाणूणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लवे । लवाणं सत्तहत्तरिए एस मुहुत्ते वियाहिए || एगमेगस्स णं भंते ! मुहुतस्स केवइया ऊसासा वियाहिया ? गोयमा ! तिन्नि सहस्सा सत्त य सयाइं तेवरिं च ऊसासा । एस मुहुत्तो भणिओ सव्वेहि अणंतनाणीहिं ॥५॥ दो नालिया मुहुत्तो, सट्टि पुण नालिया अहोरतो। पन्नरस अहोरत्ता पक्खो, पक्खा दुवे मासो ॥८६।। (कालपमाणनिवेययडियाजंतविहाणविही) दाडिमपुप्फागारा लोहमई नालिया उ कायव्वा । तीसे तलम्मि छिदं, छिद्दपमाणं पुणो वोच्छं ॥८॥ *छण्णउइ पुच्छवाला तिवासजयाए गोति (? भि) हाणीए । "अस्संवलिया उज्जुय नायव्वं नालियाछिदं ॥८॥ १. सुहम सं०॥ २. पक्खो, मासो दुवे पक्खा सं० ॥ ३. °मती ना सं०॥ ४. छण्णउतिमूलवालेहि तिवस्सजाताय गोकुमारीय । उज्जुगतपिडितेहि तु कातन्वं णालियाछिड्डु ॥१०॥ इतिस्वरूपा ज्योतिष्करण्डके दृश्यते । अत्र श्री मलयगिरिपादैः गोकुमारीयस्थाने गयकुमारीए इति पाठः उज्जुगत स्थाने उज्जुकत इति च पाठ आदृतोऽस्ति । तथा ज्योतिष्करण्डकमूलप्रत्यन्तरेषु उज्जुगतपिडितेहि तु स्थाने उज्जुकयाऽसंवलिया इति पाठभेदो दृश्यते ॥ ५. असंवलिया उज्जा य नाय° सा० पु०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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