Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit SamsthanPage 76
________________ तंदुलवैचारिकप्रकीर्णक (७८) हे आयुष्मान् ! वह साढे बाईस तंदुलवाह कैसे खाता है ? हे गौतम ! दुर्बल स्त्री के द्वारा खण्डित, बलवान स्त्री के द्वारा सूप आदि से छटक, खैर के मूसल से कूट कर भूसी और कंकर से रहित कर, अखण्डित एवं परिपूर्ण चावलों के साढे बारह पलों का एक प्रस्थ होता है। वह प्रस्थक मागध भी कहा जाता है। दो बार (चावल खाता है)। (१) सुबह एक प्रस्थ (२) सांयकाल एक प्रस्थ' । एक मागध या प्रस्थक में चौसठ हजार चावल (होते हैं)। दो हजार चावल के दानों के एक कवल के द्वारा पुरुष का आहार बत्तीस कवल, स्त्री का अठाईस कवल और नपुंसक का चौबीस कवल होता है। इस प्रकार हे आयुष्मान् ! यह गणना इस प्रकार है-दो असती की एक प्रसृति, दो प्रसृति की एक सेतिका, चार सेतिका का एक कुंडव, चार कुडव का एक प्रस्थक, चार प्रस्थक का एक आढक, साठ आढक का एक जघन्य कुम्भ, अस्सी आढक का मध्यम कुम्भ, सौ आढक का उत्कृष्ट कुम्भ और आठ सौ आढक का एक वाह होता है। इस वाह प्रमाण से पुरुष साढे बाईस वाह तंदुल खाता है। इस गणित के अनुसार :(७९) (एक वाह में) चार सौ साठ करोड़ और अस्सी लाख चावल के वाने होते हैं । इस प्रकार कहा गया है। (८०) इस प्रकार साढे बाईस वाह तन्दुल खाता हुआ, वह साढे पाँच कुंभ मूंग खाता है, साढे पाँच कुंभ मूंग खाता हुआ वह चौबीस सौ आढक घृत और तेल खाता है, चौबीस सौ आढक स्नेह खाता हुआ वह छत्तीस हजार पल नमक खाता है, छत्तीस हजार पल नमक खाता हुआ वह दो मास में बदलने पर छः सौ धोती (कपड़ा) पहनता है । अगर एक मास में बदलता है (नई धारण करता है), तो बारह सौ धोती. (कपड़ा) पहनता है। इस प्रकार हे आयुष्मान् ! सौ वर्ष की आयु के (मनुष्यों के लिए) स्नेह, नमक, भोजन और वस्त्र का यह , सब गणित या माप-तोल है। यह गणित परिमाण भी महर्षियों के द्वारा दो प्रकार का कहा गया है। जिसके (सब कुछ खाने-पीने पहनने को) है उसकी गणना की जाती है। जिसके (ये सब) नहीं है, उसकी क्या गणना की जाय? १. प्रस्थक या मागध के प्रमाण से प्रतिदिन प्रातः के भोजन के लिए एक प्रस्थक एवं शाम के भोजन हेतु एक प्रस्थक अन्न की आवश्यकता होती है। www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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