Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 63
________________ तंदुलवेयालियपइण्णयं दसगस्स 'उबक्खेवो, वीसइवरिसो उ गिण्हई विज्ज। भोगा य तीसगस्सा, चत्तालीसस्स विन्नाणं ।।५६।। पन्नासयस्स चक्खं हायइ, सट्टिक्यस्स बाहुबलं । सत्तरियस्स उ भोगा, आसीकस्साऽऽयविन्नाणं ॥५७॥ नउई नमइ सरीरं, पुन्ने वाससए जीवियं चयइ । केत्तिओऽत्थ सुहो भागो ? दुहभागो य केत्तिओ?॥५८।। (क्ससु वसासु सुह-दुक्खविवेगेण धम्मसाहणोवएसो) जो वाससयं जीवइ सुही भोगे य भुंजई। तस्सावि 'सेविउं सेओ धम्मो य जिणदेसिओ ॥५९॥ . किं पुण सपच्चवाए जो नरो निच्चदुक्खिओ? । सुट्ट्यरं तेण कायन्वो धम्मो य जिणदेसिओ ॥६०॥ . नंदमाणो चरे धम्म 'वरं मे लटुतरं भवे'। अणंदमाणो वि चरे धम्म ‘मा मे पावतरं भवे' ॥६॥ न वि जाई कुलं वा वि विजा वा वि सुसिक्खिया। "तारे नरं व नारिं वा, सव्वं पुण्णेहि वड्ढई ॥६२।। पुण्णेहिं हायमाणेहिं पुरिसगारो वि हायई। पुण्णेहिं वडढमाणेहिं पुरिसगारो वि वड्ढई ॥६३।। १. अव० सं० ॥ २. °गस्स य चत्तालीसस्स बलमेव सा० ॥ ३. भोगा य सत्तरिस्स उ, आसीकस्सा° पु० । भोगा य सत्तरिस्स य, असीययस्सा सा० ॥ ४. सेवियं से° सं०॥ ५. तारेइ नर सं० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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