Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 62
________________ तंदुलवैचारिकप्रकीर्णक (४६) जन्म होते ही जो जीव प्रथम अवस्था को प्राप्त होता है, उसमें वह अज्ञानता के कारण सुख, दुःख और क्षुधा को नहीं जानता है।' (४७) दूसरी अवस्था को प्राप्त वह नाना प्रकार की क्रीडाओं के द्वारा क्रीडा __ करता है। उसकी काम-भोगों (मैथुन-सुख) में तीन मति उत्पन्न नहीं होती है। (४८) जिस समय मनुष्य तीसरी अवस्था को प्राप्त होता है, (उस समय) वह पाँच प्रकार के विषय भोगों को भोगने के लिए निश्चय ही समर्थ होता है। (४९) चौथी बला नामक अवस्था के आश्रित मनुष्य किसी बाधा के उपस्थित न होने पर अपने बल प्रदर्शन में समर्थ होता है। . (५०) क्रम से जो मनुष्य पाँचवीं अवस्था को प्राप्त होता है, (वह) धन की चिन्ता के लिए समर्थ होता है (अर्थात् धन की चिन्ता करता है) एवं परिवार को प्राप्त होता है। (५१) छठी ह्रासमान अवस्था के आश्रित मनुष्य, इन्द्रियों में शिथिलता आने पर, कामभोगों के प्रति विरक्त होता है। (५२) सातवीं प्रपञ्चा नामक दशा के आश्रित मनुष्य स्निग्धं लार और कफ गिराने लगता है और बार-बार खाँसता रहता है। (५३) संकुचित हुई पेट की चमड़ी वाला आठवीं अवस्था को प्राप्त मनुष्य नारियों का अप्रिय हो जाता है और बुढ़ापे में परेणमन (करता है)। (५४) नवी मुन्मुख नामक दशा (है), जिस दशा के आश्रित (मनुष्य का) शरीर वृद्धावस्था से आक्रान्त हो जाता है और वह मनुष्य काम-वासना से रहित होकर रहता है। ((५५) दसवीं दशा को प्राप्त व्यक्ति की वाणी क्षीण हो जाती है और स्वर भिन्न हो जाता है । वह दीन, विपरीत-बुद्धि, भ्रान्त-चित्त, दुर्बल एवं दुःखद अवस्था को प्राप्त होता है। १. जन्म के पश्चात् प्रथम अवस्था में सुख, दुःख आदि संवेदनाएं तो होती है किन्तु यह सुख हैं, यह दुःख है, यह भूख है, ऐसा वह नहीं जानता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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