Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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- १.८
तंदुलवेयालियपइणयं
[७] जीवे णं भंते ! गब्भगए समाणे देवलोएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए तो उववज्जेज्जा से केणटुणं भंते ! एवं वुच्चइ – अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जेणं जीवे गब्भगए समाणे सण्णी पंचिदिए सव्वाहिं पज्जतीहि पज्जत्तए वेउब्वियलद्धीए वीरियलद्धीए ओहिनाणलद्धीए तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आयरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म तओ से भवइ तिव्वसंवेगसंजायसड्ढे तिब्वधम्माणुरायरते से णं जीवे धम्मकामए पुण्णकामए सग्गकामए मोक्खकामए, धम्मकंखिए पुन्न कंखिए सग्गकंखिए, मोक्खकंखिए, धम्मपिवासिए पुन्नपिवासिए सग्गपिवासिए मोक्खपिवासिए, तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदप्पियकरणे तदट्ठोवउत्ते तब्भावणाभाविए एवंसि णं अंतरंसि कालं करेज्जा देवलोएसु उववज्जेज्जा, से एएणं अट्ठे णं गोयमा एवं वुच्चइअत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा ।
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( तंदुलवैचारिक, सूत्र - २७) [८] जीवे णं भंते ! गब्भगए समाणे उत्ताणए वा पासिल्लए वा अंबखुज्जए बा अच्छेन्न वा चिट्ठेज्ज वा निसीएज्ज वा तुयट्टेज्ज वा आसएज्ज वा सएज्ज बा माऊए सुयमाणीए सुयइ जागरमाणीए जागरइ सुहिआए सुहिओ भवइ दुहिए दुहिओ भवइ ? हंता गोयमा ! जीवे णं गब्भगए समाणे उत्ताणए बा जाव दुक्खिआए दुखिओ भवइ ।
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( तंदुलवैचारिक, सूत्र - २८) [९] आउसो ! तओ नवमे मासे तीए वा पडुप्पन्ने वा अणागए वा चउन्हं माया अन्नयरं पयायइ । तं जहा - इत्थि वा इथिरूवेणं १ पुरिसं वा पुरिसरुवेणं २ नपुंसगं वा नपुंसगरूवेणं ३ बिंबं वा बिरूवेणं ४ |
[१०] अप्पं सुक्कं बहुं ओयं
अप्पं ओयं बहुं सुक्कं
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( तंदुलवेचारिक, सूत्र - ३४) इत्थीया तत्थ जायई । पुरिसो तत्थ जायई । ( तंदुलवैचारिक, गाथा - ३५ )
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