Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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तहलक्यालिपपई . जीवे णं भंते ! गब्भगए समाणे किमाहारं आहारेइ ?, गोयमा ! जं से माया नाणाविहाओ. रसविगईओ तित्त-कडुय-कसायंबिल-महराई दव्वाइं आहारेइ तओ एगदेसेणं ओयमाहारेइ ॥२२॥
[गब्भत्थस्स जीवस्स आहारो] तस्स फलबिटसरिसा उप्पलनालोवमा भवइ नाभी। रसहरणी जणणीए सयाइ नाभीए पडिबद्धा ॥२३॥ नाभीए ताओ गब्भो ओयं आइयइ अण्हयंतीए । ओयाए तीए गब्भो विवड्ढई जाव जाओ त्ति ॥२४॥
[गब्भुप्पन्नजीवं पडुच्च माउ-पिउअंगनिख्वणं] कइ णं भंते ! माउअंगा पण्णत्ता? गोयमा! तो माउअंगा पण्णत्ता, तं जहा-मसे १ सोणिए २ मत्थुलंगे। ३। कइ णं भंते ! पिउअंगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ पिउअंगा पण्णत्ता, तं जहा-अट्ठि १ अट्टिमिजा २ केस-मंसु-रोम-नहा ३ ॥२५॥
[गभगयस्स जीवस्स गरएसु उप्पत्ती] जीवे णं भंते ! गब्भगए समाणे "नरएसु उववज्निज्जा ? गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेजा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा । से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ जीवे णं गब्भगए समाणे 'नरएसु अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्येगइए नो उववज्जेजा ? गोयमा ! जे णं जीवे गब्भगए समाणे सन्नी पंचिदिए सव्वाहिं पज़्जत्तीहिं पज्जत्तए वीरियलद्धीए विभंगनाणलडीए वेउव्विअल-- दीए वेउव्वियलद्धिपते पराणीअं आगयं सोच्चा निसम्म पएसे निच्छुहइ, २त्ता वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणइ, २ त्ता चाउरंगिणिं सेन्नं सन्नाहेइ, सन्नाहित्ता पराणीएण सद्धि संगाम संगामेइ, से णं जीवे अत्थकामए. रज्जकामए भोगकामए कामकामए, अत्थकंखिए रज्जकंखिए भोगकंखिए कामकंखिए, अत्थपिवासिए रज्जपिवासिए भोगपिवासिए कामपिवासिए. तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्टोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविए, एयंसिं च णं अंतरंसि कालं करेज्जा नेरइएसु 'उववज्जेज्जा, से एएणं अटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-जीवे णं गब्भगए समाणे नेरइएसु अत्थेगए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो. उववज्जेज्जा ॥२६॥ १. °गईओ आहारमाहारेइ भगवत्यां पाठः ।। २. °त्थुलिंगे सं० । 'त्थुलंगे पु०॥
३-४. पिइअंगा सं० ॥ ५-६. नेरइएसु सं० भग० ॥ ७. लखीए वेउव्व-- णिढिपत्ते परा० सं० । लडीए वेउब्वियलद्धिपत्ते परा' भग० ॥ ८. सेन्नं विउब्वइ, चातुरंगिणी सेन्नं विउव्वेत्ता चाउरंगिणीए सेणाए परा° भगवतीसूत्र ।। ९. उववज्जइ, से भग० ।।
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