Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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तंदुलवेयालियपाइपयं . (गभगयस्स जीवस्स देवलोएसु उत्पत्ती) __ जीवे णं भंते ! गब्भगए समाणे देवलोएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा । ‘अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा । से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-अत्थेगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जे णं जीवे गब्भगए समाणे सण्णी पंचिदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए' वेउव्वियलद्धीए वीरियलद्धीए, ओहिनाणलद्धीए तहारुवस्स समणस्स वा 'माहणस्स वा अंतिए 'एगमवि आयरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म तओ से भवइ तिव्वसंवेगसंजायसड्ढे तिव्वधम्माणुरायरत्ते, से गं जीवे 'धम्मकामए पुण्णकामए सग्गकामए मोक्खकामए', धम्मकंखिए पुन्नकंखिए सग्गकंखिए, मोक्खकंखिए, धम्मपिवासिए पुन्नपिवासिए सग्गपिवासिए मोक्खपिवासिए, तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदप्पियकरणे तट्ठोवउत्ते तब्भावणाभाविए, एयंसि णं अंतरंसि कालं करेज्जा देवलोएसु उववज्जेज्जा, से एएणं अट्ठणं गोयमा ! एवं वुच्चइअत्यंगझए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा ॥२७॥
- (गम्भगयस्स जीवस्स माउसमसहावया)
जीवे णं भंते ! गभगए समाणे उत्ताणए वा पासिल्लए वा अंबखुज्जए वा अच्छेज्ज वा चिट्ठज्ज वा निसीएज्ज वा तुयट्टेज्ज वा आसएज्ज वा सएज्ज का माऊए सुयमाणीए सुयइ जागरमाणीए जागरइ सुहिआए सुहिओ भवइ दुहिआए दुहिओ भवइ ? हंता गोयमा! जीवे णं गन्भगए समाणे उत्ताणए वा जाव दुक्खिआए दुक्खिओ भवइ ।।२८।।
२. मवि याऽऽरियं सं० ॥ २. °ए एवं धम्म सं० ॥ ३. तम्मणे जाव
तब्भावणा सं०॥
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