Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit SamsthanPage 45
________________ तंदुलवेयालियपइण्णयं (मंगलमभिधेयं च) निज्जरियजरा-मरणं वंदित्ता जिणवरं महावीरं । वोच्छं पइन्नगमिणं तंदुलवेयालियं नाम ॥ १ ॥ (दाराणि) सुणह गणिए दस दसा वाससयाउस्स जह विभज्जति । संकलिऐ वोगसिए जं चाऽउं सेसयं होइ ॥ २ ॥ जत्तियमेत्ते दिवसे जत्तिय राई मुहुत्त उसासे । गब्भम्मि वसइ जीवो आहारविहिं च वोच्छामि ॥ ३ ॥द्वारगाथा।। (गन्भवासकालपमाणं) दोन्नि अहोरत्तसए संपुण्णे सत्तसत्तरि चेव । गैब्भम्मि वसइ जीवो, अद्धमहोरत्तमन्नं च ॥ ४ ॥ एए उ अहोरत्ता नियमा जीवस्स गन्भवासम्मि । हीणाऽहिया उ एत्तो उवघायवसेण जायंति ।। ५ ॥ अट्ठ सहस्सा तिन्नि उ सया मुहुत्ताण पण्णवीसा य । गब्भगओ वसइ जिओ नियमा, हीणाहिया एत्तो॥ ६ ॥ तिन्नेव य कोडीओ चउदस य हवंति सयसहस्साई । दस चेव सहस्साई दोन्नि सया पन्नवीसा य ॥७ ।। उस्सासा निस्सासा एत्तियमित्ता हवंति संकलिया। जीवस्स गब्भवासे नियमा, हीणाऽहिया एत्तो ॥ ८॥ १. °ए वाससए जं चाऊ से जे० सा० ॥ २. गभगो वसइ जिओ, अद्ध सं० ॥ ३. चोद्दस सं० पु० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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