Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 49
________________ तंदुलवेयालियपरणय (गभगयजीवस्स पुरिसाइजाइपरिणा) दाहिणकुच्छी पुरिसस्स होइ, वामा उ इत्थियाए उ । उभयंतरं नपुंसे, तिरिए अट्ठव वरिसाई ॥ १६ ॥ (गन्भुप्पत्ती गब्भगयजीववियासकमो य) - इमो खलु जीवो अम्मा-पिउसंजोगे माऊओयं पिउसुक्कं तं तदुभयसंसंट्ठ कलुसं किब्बिसं तप्पढमयाए आहारं आहारित्ता गब्भत्ताए वक्कमइ ॥१७॥ सत्ताहं कललं होइ, सत्ताहं होइ अब्बुयं । अब्बुया जायए पेसी, पेसीओ वि घणं भवे ।।१८।। तो पढमे मासे करिसूणं पलं जायइ १। बीए मासे पेसी संजायए घणा २।तईए मासे माऊए डोहलं जणइ ३। चउत्थे मासे माऊए अंगाइं पीणेइ ४। पंचमे मासे पंच पिंडियाओ पाणिं पायं सिरं चेव निव्वत्तेइ ५ । छ? मासे पित्तसोणियं उवचिणेइ।- अंगोवंगं च निव्वत्तेइ -१६। सत्तमे मासे सप्त सिरासयाइं पंच पेसीसयाई नव धमणीओ नवनउयं च रोमकूवंसयसहस्साई ९९००००० निव्वत्तेइ विणा केस-मंसुगा, सह केस-मंसुगा अधुढाओ रोमकूवकोडीओ निव्वत्तेइ ३५००००००, ७ । अट्ठमे मासे वित्तीकप्पो हवइ ८॥१९॥ (गभगयस्स जीवस्स आहारपरिणामो) जीवस्स णं भंते ! गब्भगयस्स समाणस्स अस्थि उच्चारे इ वा पासवणे इवा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा सुक्के इ वा सोणिए इ १. ।--। एतच्चिह्नान्तर्गतः पाठः सं० प्रतावेव वर्तते । एतत्प्रकीर्णकवृत्तिकृता एष पाठो व्याख्यातो नास्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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