Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 40
________________ भूमिका ३१ होगा कि इन दस दशाओं का विस्तृत विवरण सर्वप्रथम तंदुलवैचारिक में ही किया गया होगा । तंदुलवैचारिक के अतिरिक्त दशवैकालिक नियुक्ति की दसवीं गाथा में इन दस दशाओं का नामोल्लेख है। सर्वप्रथम हरिभद्र ने दशवैकालिक की टीका में पूर्वमुनि-रचित दस गाथाओं को उद्धृत किया है। वे ही गाथाएँ अभयदेव ने अपनी स्थानांग वृत्ति में भी उद्धृत की है। हमें ऐसा लगता है कि आचार्य हरिभद्र और आचार्य अभयदेव दोनों ने ही ये गाथाएँ तंदुलवेचारिक से ही उद्धृत की होंगी। दशवकालिक की हरिभद्रीय टीका तथा स्थानांग की अभयदेववृत्ति में ये गाथाएँ शब्दशः समान पायी जाती हैं। हरिभद्र द्वारा इन्हें पूर्वाचार्य कृत कहने से स्पष्ट है कि उन्होंने इन्हें तंदुलवैचारिक से ही लिया होगा । कालिक दृष्टि से भी तंदुलवैचारिक की उपस्थिति के संकेत तो पाँचवीं शती से मिलते हैं जबकि हरिभद्र आठवीं शती के हैं। इन दस दशाओं की विवेचना पर यदि हम गम्भीरता से विचार करें, तो यह पाते हैं कि इनमें से पाँच दशाएँ शरीर और चेतना के विकास को सूचित करती है और अन्त की पाँच दशाएँ क्रमशः शरीर एवं चेतना के ह्रास को सूचित करती है । वस्तुतः यह मानव जीवन का यथार्थ है कि प्रथमतः मनुष्य के शरीर और बुद्धितत्त्व में क्रमशः विकास होता है और फिर उसमें क्रमशः ह्रास होता है। सामान्यतया तंदुलवैचारिक का रचनाकार तथा हरिभद्र एवं अभयदेव इन दस दशाओं के विवेचन के सन्दर्भ में समान दृष्टिकोण रखते हैं। फिर भी जहाँ हरिभद्र ने नवी दशा को मृन्मुखी और दसवीं दशा को शायिनी बताया है वहाँ अभयदेव नवी दशा को मुमुखी और दसवीं दशा को शायनी कहते हैं। दशाओं का यह विवेचन अनुभव के स्तर पर भी खरा उतरता है। तंदुलवैचारिककार इन दशाओं के चित्रण के माध्यम से यही बताना चाहता है कि मनुष्य जिस देह के साथ अत्यन्त आसक्ति रखता है, वह देह किस प्रकार विकसित होती है और कैसे ह्रास को प्राप्त होकर नष्ट हो जाती है। - तंदुलवैचारिक में इन दस दशाओं के विवेचन के पूर्व मनुष्य की गर्भावस्था और उसमें होने वाले विकास का चित्रण किया गया है। गर्भावस्था के इस चित्रण में ग्रन्थकार ने वही विवरण दिया है जो जैन और जैनेत्तर परम्पराओं में सामान्यतया हमें उपलब्ध हो जाता है। इसमें गर्भाधान से लेकर जन्म तक की समस्त विकास प्रक्रिया को दिखाया गया है कि गर्भावस्था में मनुष्य की स्थिति कैसी-कैसी होती है एवं उसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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