Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 37
________________ २८ तंदुलवेयालियपइण्णय २९] कालो परमनिरुद्धो अविभज्जो तं तु जाण समयं तु । समया य असंखेज्जा हवंति उस्सास-निस्सासे ।। (तंदुलवैचारिक, गाथा-८२) .[३०] हदुस्स अणवगल्लस्स निरुवकिट्टस जंतुणो। एगे ऊसास-नीसासे एस पाणु त्ति वुच्चइ ॥ (तंदुलवैचारिक, गाथा-८३) [३१] : सत्त पाणूणि से थोवे, सत्त थोवाणि से लवे । लवाणं सत्तहत्तरिए एस मुहुत्ते वियाहिए । (तंदुलवैचारिक, गाथा-८४) एगमेगस्स णं भंते ! मुहुत्तस्स केवइया ऊसासा वियाहिया ? गोयमा ! [३] तिन्नि सहस्सा सत्त य सयाई तेवतरि च ऊसासा । एस मुहुत्तो भणिओ सव्वेहि अणंतनाणीहिं ।। (तंदुलवैचारिक, गाथा-८५) [३३] दो नालिया मुहुत्तो, सट्ठि पुण नालिया अहोरत्तो। पन्नरस अहोरत्ता पक्खो, पक्खा दुवे मासो ।। (तंदुलवैचारिक, गाथा-८६) [३४] आउसो !ज पि य इमं सरीरं इटुं पियं कंतं मणुण्णं मणामं मणाभिरामं थेज्ज वेसासियं सम्मयं बहमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं, रयणकरंडओ विव सुसंगोवियं, चेलपेडा विव सुसंपरिवुडं, तेल्लपेडा विव सुसंगोवियं ‘मा णं उण्हं मा णं सीयं मा णं खुहा मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाइय-पित्तिय-सिभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका फुसंतु'त्ति कटु । एवं पि याई अधुवं अनिययं असासयं चओ वचंइयं विप्पणासधम्म, पच्छा व पुरा व अवस्स विप्पचइयव्वं ॥ (तंदुलवैचारिक, सूत्र-१०८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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