Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 35
________________ २६ तंदुलवेयालियपइण्णय (२५) ते णं मणुया ओहस्सरा मेहस्सरा हंसस्सरा कोंचस्सरा नंदिस्सरा नंदिघोसा सीहस्सरा सीहघोसा मंजुस्सरा मंजुघोसा सुस्सरा सुस्सरघोसा अणुलोमवाउवेगा कंकग्गहणी कवोयपरिणामा सउणिप्फोस-पिटुंतरोरुपरिणया पउमुप्पल गंधसरिसनीसासा सुरभिवयणा छवी निरायंका उत्तम - पसत्थाऽइसेस - निरुवमत - जल्लमल-कलंक-सेय-रय-दोसवज्जियसरीरा निरुवलेवा छायाउनोवियंगमंगा वज्जरिसहनारायसंघयणा. समचउरंससंठाणसंठिया। (तंदुलवैचारिक, सूत्र-६७) [२६] आसी य समणाउसो ! पुवि मणुयाणं छव्विहे संघयणे । तं जहावज्जरिसहनारायसंघयणे १ रिसहनारायसंघयणे २ नारायसंघयणे ३. अदनारायसंघयणे ४ कीलियासंघयणे ५ छेवटुसंघयणे ६। संपइ खलु. आउसो ! मणुयाणं छेवढे संघयणे वट्टइ। (तंदुलवैचारिक, सूत्र-६९) [२७] आसी य आउसो ! पुब्धि मणुयाणं छविहे संठाणे । तं जहा-समचउरसे १ नग्गोहपरिमंडले २ सादि ३ खुज्जे ४ वामणे ५ हुंडे ६ । संपइ. खलु आउसो ! मणुयाणं हुंडे संठाणे वट्टइ।। (तदुलवैचारिक, सूत्र-७०) [२८] आउसो ! से जहानामए केइ पुरिसे ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल-पायच्छित्ते सिरंसिण्हाए कंठेमालकडे, आविद्धमणि-सुवण्णे अहयसुमहग्घवत्थपरिहिए चंदणोक्किण्णगायसरीरे सरससुरहिगंधगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते सुइमालावन्नग-विलेवणे कप्पियहारऽद्धहार-तिसरय-पालंबपलं-- बमाणकडिसुत्तयसुकयसोहे पिणद्धगेविज्जे अंगुलेज्जगललियंगयललियकयाभरणे नाणामणि-कणग-रयणकडग-तुडियथंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए. कुंडलुजोवियाणणे मउडदित्तसिरए हारुच्छयसुकय-रइयवच्छे पालंबपलंबमाण-सुकयपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगलंगुलिए नाणामणिकणग-रयणविमलमहरिह -निउणोविय-मिसिमिसिंत-विरइय- सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-लटुआविद्धवीरक्लए । किं बहुणा ? कप्परुक्खए चेव अलंकिय-विभूसिए सुइपए भवित्ता (तंदुलवैचारिक, प्रसू-७६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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