Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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२२६
अन्य आगम ग्रन्थ
____ २२ [१९] सत्तमि च दसं पत्तो आणुपुव्वीइ जो नरो। निठ्ठहइ चिक्कणं खेलं खासइ य अभिक्खणं ।।
( ठाणं-पृ० १०१५ ) [२०] संकुचियवलीचम्मो संपत्तो अट्ठमि दसं । णारीणमणभिप्पेओ जराए परिणामिओ ।।
(ठाणं-पृ० १०१५) [२१]
णवमी मम्मुही नाम जं नरो दसमस्सिओ। जराघरे विणस्संतो जीवो वसइ अकामओ ।।
(ठाणं-पृ० १०१५) [२२]
हीणभिन्नसरो दीणो विवरीओ विचित्तओ । दुब्बलो दुक्खिओ सुवइ संपत्तो दसमि दसं ।।
(ठाणं-पृ० १०१५)
(दशवै० हारिभद्रीय वृत्ति ८,९) [२३] असंखिजाणं समयाणं समुदयसमितिसमागमेणं सा एगा आवलि अतिवुच्चइ संखेनाओ आवलियाओ ऊसासो, संखिज्जाओ आवलियाओ नीसासो हट्ठस्स अणवगल्लस्स, निरुवक्किट्ठस्स जंतुणो। एगे ऊसासनीसासे एस पाणु त्ति वुच्चइ । सतपाणूणि से थोवेलवे".."मुहुत्ते....." अहोरत्तं"."""पक्खा "...""मासा...""उऊ"""""अयणं....."संवच्छरे"""" जुगे"""वाससयं "वाससहस्सं...""वाससयसहस्स । .
... (अनुयोगद्वार-भाग २ घासी०, पृ० २४८)
.. अथवा पुवाणुपुब्बी समए आवलिया आणापाणू थोवे लवे मुहुत्ते दिवसे अहोरत्ते पक्खे मासे उदू अयणे संवच्छरे जुगे वाससए वाससहस्से वाससतसहस्से।
(अनुयोगद्वार-मधु०, पृ० १२७) [२४] गरगणा भोगुत्तमा भोगलक्खणधरा"सुजायसव्वंगसुंदरंगा रत्तुप्पलपत्तकंतकरचरणकोमलतला सुपइट्ठियकुम्मचारुचलणा अणुपुव्व सुसंहयंगुलीया उण्णयतणुतंबणिद्धणक्खा संठिय सुसिलिट्ठगूढगुंफा एणीकुरुविदंवत्तवट्टाणुपुट्विजंघा समुग्गणिसग्गगूढजाणू वरवारणमत्त-तुल्लविक्कमविलासियगई वरतुरगसुजायगुज्झदेसा आइण्णहयव्वणिरुवलेवा पमुइयवर
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