Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit SamsthanPage 26
________________ . अन्य आगम ग्रन्थ १७ 'य [४] जीवे णं भंते ! गब्भगए समाणे किमाहारमाहारेति ? गोयमा ! जं से माता नाणाविहाओ रसविगतीओ आहारमाहारेति तदेक्कदेसेणं ओयमाहारेति । ( भगवती सूत्र-१-७-१३) [५] कति णं भंते ! मातिअंगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ मतिअंगा पण्णत्ता । तंजहा-मसे सोणिते मत्थुलुंगे। कति णं भंते ! पितियंगा पण्णत्ता? गोयमा ! तओ पेतिअंगा पण्णत्ता। तंजहा-अट्ठि अट्टिमिजा केसमंसु-रोम-नहे। ( भगवती सूत्र-१-७-१६-१७) [६] (१) जीवे णं भंते ! गब्भगते समाणे नेरइएसु उववज्जेजा ? गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा। (२) से केण?णं० ? गोयमा ! से णं सन्नी पचिदिए सव्वाहिं पज्जतीहिं पज्जत्तए बीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए पराणीअं आगयं सोच्चा निसम्म पदेसे निच्छुभति, २ वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णित्ता चाउरंगिणिं सेणं विठव्वइ, चाउरंगिणिं सेणं विउव्वेत्ता चाउरंगिणीए सेणाए पराणीएणं सद्धि संगामं संगामेइ, सेणं जीवे अत्थकामए रज्जकामए भोगकामए, कामकामए अत्थकंखिए रज्जकंखिए भोगकंखिए कामकंखिए अत्यपिवासिते, · रज्जपिवासिते भोगपिवासिते कामपिवासिते तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पित्तकरणे तब्भावणाभाविते एतंसि णं अंतरंसि कालं करेज्ज नेरतिएसु उववज्जइ; से तेणठेणं गोयमा ! जाव अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा। ( भगवती सूत्र-१-७-१९) भू०-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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