Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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अन्य आगम ग्रन्थ
[१] गोयमा ! माउओयं पिउसुक्कं तदुभयसंसिटुं कलुसं किव्विसं तप्पढमताए आहारमाहारेति ।
(भगवती सत्र-१-७-१२)
[२] जीवस्स णं भंते ! गभगतस्स समागस अत्यि उच्चारे इ वा पासवणे इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा ?
णो इणढे समढें। से केण?णं?
गोयमा ! जीवे णं गभगए समाणे जमाहारेति तं चिणाइ तं सोतिदियत्ताए जाव फासिदियत्ताए अट्ठि-अट्ठिमिज-केस-मंसु-रोम-नहत्ताए, से केणढणं ।
( भगवती सूत्र-१-७-१४ )
[३] जीवे णं भंते ! गभगते समाणे पभू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए? ____ गोयमा ! णो इण? सम8 ।से केणटेणं ? गोयमा ! जीवे णं गभगते समाणे सव्वतो आहारेति, सव्वतो परिणामेति, सव्वतो उस्ससति, सब्बतो निस्ससति, अभिक्खणं आहारेति, अभिक्खणं परिणामेति, अभिक्खणं उस्ससति, अभिक्खणं निस्ससति, आहच्च आहारेति, आहच्च परिणामेति, आहच्च उस्ससति, आहच्च निस्ससति। मातुजीवरसहरणी पुत्तजीवरसहरणी मातुजीवपडिबद्धा पुत्तजीवं फुडा तम्हा आहारेइ, तम्हा परिणामेति, अवरा वि य णं पुत्तजीव पडिबद्धा माउजीवफुडा तम्हा चिणाति, तम्हा उवचिणाति, से तेण?णं० जाव नो पभू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए।
( भगवती सूत्र-१-७-१५)
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