Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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अन्य आगम ग्रन्थ [७] जीवे णं भंते ! गभगते समाणे देवलोगेसु उववज्जेज्जा ?
गोयमा ! अत्येगइए उववज्जेज्जा अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा।
से केणठेणं ? गोयमा ! से णं सन्नी पंचिदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं घम्मियं सुवयणं सोच्चा णिसम्म ततो भवति संवेगजातसड्ढे तिव्वधम्माणुरागरत्ते, से णं जीवे धम्मकामए पुण्णकामए सग्गकामए मोक्खकामए, धम्मकंखिए, पुण्णकखिए सग्गकंखिए, मोक्खकंखिए धम्मपिवासिए पुण्णपिवासिए सग्गपिवासिए मोक्खपिवासिए तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिते ततिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवडते तदप्पित्तकरणे तब्भावणाभाविते एयंसि णं अंतरंसि कालं करेज्ज देवलोएसु उववज्जति; से तेणठेणं गोयमा !०।
(भगवती सूत्र-१-७-२०) [८] जीवे णं भंते ! गब्भगए समाणे उत्ताणए वा पासिल्लए वा अंबखुज्जए वा अच्छेज्ज वा चिठ्ठज्ज वा निसीएज्ज वा तुयट्टेज्ज वा मातुए सुवमाणीए सुवति, जागरमाणीए जागरति सुहियाए सुहिते. भवइ दुहिताए दुहिए भवति ? हंता, गोयमा ! जीवे णं गभगए समाणे जाव दुहियाए भवति ।
(भगवती सूत्रः-१-७-२१). [९] चत्तारि मणुस्सीगब्भा पण्णत्ता, तंजहा-इत्थित्ताए, पुरिसत्ताए, णपुंसगत्ताते, बिबत्ताए।
(स्थानांग सूत्र-४-४-६४२ ) [१०] अप्पं सुक्कं बहुं ओयं इत्थी तत्थ पजायति । अप्पं ओयं बहुं सुक्कं पुरिसो तत्थ जायति ॥
( स्थानांग सूत्र-४-४-६४२)
(संग्रहणी गाथा)
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