Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 21
________________ तंदुलक्यालियपइण्णयं कौन सी गन्ध है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि आँख, नाक • और कान का मैल, कफ और मल-मूत्र आदि की गन्ध यही सब तो तेरी • अपनी गन्ध है । (१३०-१५३) . स्त्री शरीर-स्वभाव-अनेक कवियों और लेखकों ने स्त्रियों की प्रशंसा में रचनाएँ की हैं परन्तु यहाँ कहा गया है कि वास्तव में वे ऐसी नहीं हैं। वे स्वभाव से कुटिल, अविश्वास का घर, व्याकुल चित्त वाली, हजारों अपराधों की कारणभूत, पुरुषों का क्ध स्थान, लज्जा की नाशक, कपट का आश्रय स्थान, शोक की जनक, दुराचार का घर, ज्ञान को नष्ट करने वाली, कुपित होने पर जहरिले साँप की तरह, दुष्ट हृदया होने से व्याघ्री की तरह और चंचलता में बन्दर की तरह होती हैं। ये नरक की तरह डरावनी, बालक की तरह क्षणभर में प्रसन्न या रूष्ट होने वाली, किंपाक फल की तरह बाहर से अच्छी लगने वाली, किन्तु कटु फल प्रदान करने वाली, अविश्वसनीय, दुःख से पालित, रक्षित और मनुष्य की दृढ़ शत्रु है। ये साँप के समान कुटिल हृदय वाली, मित्र और परिजनों में फूट डालने वाली, कृतघ्न और सर्वाङ्ग जलाने वाली होती हैं। इसी सन्दर्भ में ग्रन्थ में उनके नाम की अनेक नियुक्तियाँ दी गयी हैं । पुरुषों का उनके समान अन्य कोई अरि (शत्र) नहीं होने से वह नारी कही जाती है । नाना प्रकार से पुरुषों को मोहित करने के कारण महिला, पुरुषों को मद युक्त बनाती है इसलिए प्रमदा, महान् कष्ट उत्पन्न कराती है इसलिए महिलिका, योग-नियोग से पुरुषों को वश में करने से योषित कही जाती है। ये स्त्रियाँ विभिन्न हाव-भाव, विलास, शृंगार, कटाक्ष, आलिङ्गन द्वारा पुरुषों को आकृष्ट करती हैं। सैकड़ों दोषों की गागर और अनेक प्रकार से बदनामी का कारण होती है। स्त्रियों के चरित्र को बुद्धिमान पुरुष भी नहीं जान सकते हैं फिर साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या है ? इस कारण व्यक्ति को चाहिए कि वह इनका सर्वथा त्याग कर दें। (१५४-१६७) __धर्म का माहात्म्य-धर्म रक्षक है, धर्म ही शरणभूत है । धर्म से ही ज्ञान की प्रतिष्ठा होती है और धर्म से ही मोक्ष पद प्राप्त होता है। देवेन्द्र और चक्रवर्तियों के पद भी धर्म के कारण ही प्राप्त होते हैं और अन्ततः उसी से मुक्ति की प्राप्ति भी होती है। यहीं पर उपसंहार करते हुए कहते हैं कि इस शरीर का गणित से अर्थ प्रकट कर दिया है अर्थात् विश्लेषण करके उसके स्वरूप को बता दिया गया है जिसे सुनकर जीव सम्यकत्त्व और मोक्ष रूपी कमल को प्राप्त करता है । (१७१-१७७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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