Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 18
________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे 'छप्पण्णं णक्रुत्ता जोगं जोइंसु जोयंति जोइस्संति' षट् पंचाशन्नक्षत्राणि योगं युक्तवन्ति योगं युञ्जन्ति योगं योक्ष्यति हे गौतम ! जम्बूद्वीपे द्वीपेऽतीतकाले षट् पंचाशनक्षत्राणि योगं युक्तवंति योगं निजमण्डलमागतैग्रहैः सह संबन्ध युक्तवंति प्रासवंति, वर्तमानकाले योगं नक्षत्राणि युञ्जन्ति प्राप्नुवन्ति तथाऽनागतकाले षट् पंचाशनक्षत्राणि योगं निजमण्डलक्षेत्रमागतैहैःसंबन्धं यौक्ष्यंति प्राप्स्यति एकैकस्य चन्द्रस्य प्रत्येक मष्टाविंशतिनक्षत्रपरिवारस्य सद्भावेन चन्द्रद्वयस्य परिवारसंकलनया षट् पंचाशनक्षत्राणि भवंतीति । 'छावत्तरं महग्गहसयं चारं चरिंसु चरंति चरिस्संति' हे गौतम ! जम्बूद्वीपे द्वीपे षट्सप्ततं षट्सप्तत्युत्तरम् महाग्रहशतम् एकैकस्य चन्द्रस्य प्रत्येकमष्टाधिकाशी तेहाणं परिवारभावात् चारं मण्डलपरिभ्रमणलक्षणं चरितवत् अतीतकाले, तथा वर्तमानकालेपि षटसप्तत्यधिक महाग्रहशतं जंबूद्वीपे चरति तथाऽनागतकाले जंबूद्वीपे षट्सप्तत्यधिक महाग्रहशतं चारं चरिष्यतीति । कियत्यस्तारागण कोटिंकोटय इति प्रश्नस्योत्तरं पद्येनाह-'एगं च सयेत्यादि-'तारागणकोडिकोडीणं' तारागणकोटि इतने ही सूर्य ताप देते हैं और भविष्यकाल में भी इतने ही सूर्य यहां ताप देते रहेंगे। इस तरह चन्द्रद्वय से आक्रान्त दो दिशाओं से अतिरिक्त शेष दो दिशाओं में दो सूर्यो द्वारा ताप मिला करता है 'छप्पण्णं णक्खत्ता जोगं जोइंसु जोअंति, जोइस्संति' ५६-नक्षत्रों ने यहां पूर्व काल में योग प्राप्त किया है वर्तमान में इतने ही नक्षत्र यहां योग प्राप्त करते हैं और भविष्यत् काल में इतने ही नक्षत्र यहां योग प्राप्त करेगे ५६ नक्षत्र यहां इसलिये कहे गये हैं कि एक एक चन्द्र मण्डल के २८-२८ नक्षत्र होते हैं-'छावत्तरं महग्गहसयं चारं चरिंसु, चरंति, चरिस्संति' इसी तरह १७६ महाग्रहों ने यहां पर पूर्व काल में चाल चली है वर्तमान में भी वे इतने ही संख्या में यहां चाल चलते रहेते हैं और आगामि काल में भी वे इतनी ही संख्या में चाल चलते रहेंगे 'एगंच सयसहस्सं तेत्तीसं खलु भवे सहस्साई णव य सया पण्णासा तारागण कोडि कोडीणं' १३३९५० આપી રહ્યા છે અને ભવિષ્યકાળમાં પણ એટલા જ સૂર્યો અહીં તાપ આપશે આ પ્રમાણે ચન્દ્રદયથી આક્રાન્ત બે દિશાઓ શિવાય શેષ બે દિશાઓમાંથી બે સૂર્યો દ્વારા ताप माता २ छ. 'छप्पणं णक्खत्ता जोगं जोइंसु जोअंति, जोइस्संति' ५६ नक्षत्राये અહીં પૂર્વકાળમાં એગ પ્રાપ્ત કરેલ છે, વર્તમાનકાળમાં એટલા જ નક્ષત્ર અહીં યોગ પ્રાપ્ત કરે છે અને ભવિષ્યકાળમાં એટલા જ નક્ષત્ર અહીં વેગ પ્રાપ્ત કરશે. ૫૬ નક્ષત્રે અહી એટલા માટે કહેવામાં આવેલા છે કે એક-એક ચંન્દ્રમંડળના ૨૮–૨૮ નક્ષત્ર હોય छ. छावत्तरं महग्गहसयं चारं चारिंसु, चरति चरिस्संति' मा प्रमाणे १७६ महाश्रमे અહીં પૂર્વકાળમાં ગતિ કરી છે, વર્તમાનમાં પણ તેઓ આટલી જ સંખ્યામાં ગતિ કરે છે, मन भागाभी मां ५५ तो Anel on सध्यामा गति ४२ता रहे. 'एगंच सयसहस्सं तेत्तीसं खलु भवे सहस्साई णव य सया पण्णासा तारागणकोडि कोडीणं' १३3८५० જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર

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