Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 20
________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे कथनरूपोऽनुयोगः उपक्रमनिक्षेपअनुगम-नयलक्षणानि चत्वारि द्वाराणि आश्रित्य कृत्तस्तथा अन्येनाप्याचार्येण शिष्येभ्यः सूत्रार्थकरूपोऽनुयोगः कर्तव्यः, यद्यपि सर्वेषामागमानामनुयोगः कर्तव्य स्तथाप्यत्र सूत्रे जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ते रनुयोगस्यैव प्रस्तुतत्वेन तस्या अनुयोगकरणे समर्थों हि सर्वेषामागमानामनुयोगकरणे समर्थों भवति, तस्मादनुयोगविधि जिज्ञासुना मुनिनाऽनुयोगद्वारसूत्रमध्येतव्यम् , अतएव--- "चूर्णीकृत्य पराक्रमान्मणिमयं स्तम्भं सुरः क्रीडया, मेरौ सन्नलिकासु वायुवशतः क्षिप्त्वा रजो दिक्षु तत् । स्तम्भस्तैः परमाणुभिः सुमिलितैलॊके यथा दुष्करः, संसारे भ्रमतो मनुष्यजननं जन्तोस्तथा दुर्लभम् " इत्युक्तिभणितमतिदुर्लभ मानुषं जन्म सम्प्राप्य मिथ्यात्वतिमिरविनाशकं श्रद्धा ज्योतिः प्रकाशकं तत्त्वातत्त्वविवेचकं सुधाधाराऽऽसारमियामरत्वप्रदायकं चञ्चच्चन्द्रचन्द्रिकामिव चकोरचेतसो हृदयावादकं स्वप्नदृष्टवस्तुनः पुनर्जाग्रदवस्थायां तल्लाभवत् प्रमोदसन्दोहजनकं भूमिगत प्राप्तनिधिमिव सुखजनकं सकलसन्तापहारकं धर्मश्रवणं समुपओ उपक्रम-निक्षेप-अनुगम-जयलक्षण चार द्वारों का आश्रय कर किया है, वैसे ही अन्य आचार्यो ने भी शिष्यों के लिये सूत्रार्थ कथन रूप अनुयोग करना चाहिये, यद्यपि सभी आगमों का अनुयोग करना चाहिये तथापि इस सूत्र में जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुयोग को ही प्रस्तुत होने से उसके अनुयोग करने में समर्थ पुरुष सभी आगमों के अनुयोग करने में समर्थ होते हैं इस लिये अनुयोग विधिका जिज्ञासु मुनि को अनुयोग द्वार सूत्र पढना चाहिये, अत एव 'र्णीकृत्य पराक्रमान्मणिमयं,, इस उक्ति भणिति के अणुसार अत्यन्त दुर्लभ मणुष्य जन्म को प्राप्त कर मिथ्यात्वरूप तिमिर का विनाशक, श्रद्धारूप ज्योति प्रकाशक, तत्वातत्व का विवेचक, सुधाधारा मुशलधारवर्षा के समान अमरत्व का प्रदान करने वाला चञ्चत् चन्द्र चन्द्रिका के समान चकोर चित्त सहृदय जनों का हृदयाह्लादजनक, स्वप्नदृष्ट वस्तु का जाग्रद् अवस्था में फिर से એ ચાર દ્વારેને આશ્રય કર્યો છે. તેમજ અન્ય આચાર્યોએ પણ શિબેનામાટે સૂત્રાર્થ કથનરૂપ અનુગ કર જોઈ એ. યદ્યપિ બધા આગમનો અનુગ કરવો જોઈએ તથાપિ આ સૂત્રમાં જમ્બુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિને અનુગ જ પ્રસ્તુત હોવાથી એને અનુયોગ કરવામાં સમર્થ પુરુષ સર્વ આગમના અનુયાગ માટે સમર્થ હોય છે. એથી અનુગ વિધિ માટે ज्ञासा राना२ भुनिने नये 'मनुयोगवा' सूत्रनु अध्ययन ४२. मेथी 'चर्णी कृत्य पराक्रमान्मणिमयम् " म ति भु४५ अत्यंत दुम मनुष्य सन्म प्रात शन મિથ્યાત્વ રૂપ તિમિર ને વિન કરનાર, શ્રદ્ધારૂપ જ્યોતિને પ્રકાશક, તવાતવને વિવેચક, સુધાધારા-મૂશળધાર વર્ષની જેમ અમરત્વ પ્રદાન કરનાર, ચંચત્ ચદ્ર-ચન્દ્રિકાની જેમ ચકર ચિત્ત, સહુદાના મનને આહ્માદિત કરનાર, સ્વપ્ન દષ્ટ વસ્તુ જાગ્રતાવસ્થામાં પુનઃ પ્રાપ્ત થાય તેમ, અત્યંત પ્રમોદાનન્દ જનક, ભૂમિગત પ્રાપ્ત નિધિની જેમ સુખ જનક, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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