Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 19
________________ प्रस्तावना दृष्टिवादस्य वृष्णिदशा १२, तत्र प्रस्तुतोपाङ्गम् जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिरूपगम्भीरार्थतयाऽतिगहनत्वादनुयोगरहितं मुद्रितराजकीय कमनीय कोशागारमिव न तदर्थाथिनामभीष्टफलदायकं भवतीति विभाव्य कोशाध्यक्षाज्ञया प्रेष्येण कोशागारस्योन्मुद्रणमिवविदुषा तदनुयोगः कृतः, सचानुयोगश्चतुर्विधो भवति, धर्मकथानुयोगः, गणितानुयोगः, चरणकरणानुयोगश्च, तत्र धर्मकथानुयोगः-उत्तगध्ययनादिकः, गणितानुयोगः-सूर्यप्रज्ञप्त्यादिकः, द्रव्यानुयोगः पूर्वाणि सम्मत्यादिकश्व, चरणकरणानुयोगश्च आचाराङ्गादिकः तत्रानुयोगशब्दार्थस्तु युज्यते सम्बध्यते भगवदुक्तार्थेन सहेति योगः-कथनलक्षणो व्यापारः अनुरूपोऽनुकूलो वा योगः अनुयोगः भगवदुक्तार्थानुरूपः प्रतिपादनलक्षणो व्यापारोऽनुयोग इति निष्कर्षः, तत्र यथा गणधरेण सुधर्म स्वामिना जम्बूस्वामिन प्रति भगवदुक्कार्थानुरूपद्वीप प्रज्ञप्ति रूप उपाङ्ग गम्भीरार्थक होने से अत्यन्त गहन है इसलिये अनुयोग रहित होकर यह उपाङ्ग बन्द किये हुए कमनीय राजकोय कोशागार की तरह तदर्थार्थी का अभीष्ट फलदायक नहीं हो सकता ऐसा समझकर कोशाध्यक्ष को आज्ञा से नोकर द्वारा कोशागार का उद्घाटन के समान विद्वानों ने उसका अनुयोग किया, वह अनुयोग चार प्रकार का हैं-धर्मकथानुयोग १, गणितानुयोग २, द्रव्यानुयोग ३, और चरण करणानुयोग ४, उनमें उत्तराध्ययनादि धर्मकथानुयोग कहलाता है, सूर्यप्रज्ञप्त्यादि गणितानुयोग, पूर्व और सम्मत्यादि द्रव्यानुयोग और आचाराङ्गादि वरण करणानुयोग कहलाता है, उनमें अनुयोग शब्द का अर्थ भगवान वीतराग के द्वारा उक्त अर्थ के साथ अनुरूप या अनुक्ल कथन रूप व्यापार को अनुयोग कहाजाता है इस प्रकार भगवदुक्तार्थानुरूप प्रतिपादनरूप व्यापार ही अनुयोग शब्द का निष्कर्ष होता है। उस में जैसे गणधर सुधर्मस्वामी ने जम्बुस्वामी के प्रति भगवदुक्तार्थानुरूप कथनरूप अनुयोग ૧૦ વિપાક શ્રતનું પુષ્પચૂલિકા-૧૧, દષ્ટિવાદનું વૃષ્ણુિદશી-૧૨ ઉપાંગ છે. તે સર્વમાં પ્રસ્તુત જબૂદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ રૂપ ઉપાંગ ગભરાર્થક હોવાથી અત્યંત ગહન છે. એટલા માટે રહિત થઈને આ ઉપાંગ બંધ કરવામાં આવેલા કમનીય રાજકીય કેશાગારની જેમ તદથર્થોને અભીષ્ટ ફળદાયક થઈ શકે નહિ આમ વિચારીને કેશાધ્યક્ષની આજ્ઞાથી નકર વડે કેશાગારને ઉઘાટિત કરાવવાની જેમ વિદ્વાને એ તેને અનુગ કર્યો તે અનુગ ચાર मारने। छ (१) धर्मानुय।। (२) गणितानुय।। (3) च्यानुयो। मने (४) २२५४२९।नुस. તેમાં ઉત્તરાધ્યયનાદિ ધર્મકથાનુગ” કહેવાય છે. સૂર્યપ્રજ્ઞત્યાદિ ગણિતાનુયોગ, પૂર્વ અને સમેત્યાદિ દ્રવ્યાનુગ અને આચારાંગાદિ ચરણકરણાનુગ કહેવાય છે. એમાં જે “અનુગ” શબ્દ છે, તેનો અર્થ થાય છે ભગવાન વીતરાગ વડે ઉક્ત અર્થની સાથે અનુરૂપ યા–અનુકૂલ કથન રૂપ વ્યાપાર. આ પ્રમાણે ભગવદ્ ઉક્તાર્યાનુરૂપ પ્રતિપાદન રૂપ વ્યાપારજ અનુગ શબ્દને નિષ્કર્ષ થાય છે. તેમાં જેમ ગણધર સુધર્મા સ્વામીએ જણૂ સ્વામી પ્રતિ ભગવદુકૃતાર્થનુરૂપ કથન રૂપ અનુગને એટલે કે ઉપકમ-નિક્ષેપ–અનુગમ-નયલક્ષણ ON नया .. .. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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