Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 17
________________ प्रस्तावमा आहती भारती नत्वा घासीलालो मुनिव्रती । श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्तेाख्यां कुर्वे प्रकाशिकाम् ॥७॥ - जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रस्य प्रस्तावना ॥ इह हि परमासारविकरालसंसारकान्तारपर्यटनजन्य नानाविधदुःखदावदन्दह्यमानान्त:करणा उच्चावच्चाः प्राणिनो जिहासितमपि तद् दुःख समूलघातमपहन्तुमपारयन्तोऽकामनिर्जरायोगतः संजात दुःखनिदानकर्मलाघवास्तज्जिहासया निखिलकर्ममलक्षयलक्षणं निरतिशयसुखस्वरूपमोक्षपदमभिवाञ्छन्ति, तच्च मोक्ष्ययदं परमपुरुपार्थरूपतया सम्यग्ज्ञानसम्यगदर्शनसम्यक्चारित्रलक्षणरत्नत्रयविषयकपरमपुरुषकारलक्षणपरमयत्नैरुपार्जनीयम्, स च पुरुषकारः इष्टसाधनताज्ञानेन जन्यते, ममेद मिष्टसाधनम् , इति इष्ट साधनता ज्ञानश्चाप्तोपदेशात् भवति, आप्तश्च यथार्थवक्ता केवलज्ञानावलोकित सकलजीवाजीवपदार्थसार्थों निरुपाधिक परोपकारपरायणः करुणावरुणालयोऽनुभूय अर्हद् भगवान् की भारती वाणी को नमस्कार कर मुनि ब्रती घासीलाल जी श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति की प्रकाशिका व्याख्या करता हूँ ॥७॥ प्रस्तावना का हिन्दी अनुवाद इस परम असार संसाररूप घोर जंगल में इधर उधर भटकने से उत्पन्न नाना प्रकार के दुःख दावानलों से अत्यन्त सन्तप्त छोटे बडे सभी प्राणी सर्वथा छोड़ने के लायक उन दुःखो को समूल विनाश करने में असमर्थ होकर अकाम निर्जरा योग से दुःखों के मूल निदानभूतकर्मों को हलका कर उसको छोड़ने की इच्छा से सारे ही कर्मों का क्षय लक्षण निरतिशय सुख स्वरूप मोक्षपद की अभिलाषा करते है उस मोक्ष पद को परम पुरुषार्थस्वरूप होने से सम्यग् ज्ञान' सम्यग दर्शन, सम्यक चारित्र लक्षण रत्नत्रय विषयक परम पौरुषलक्षण परम यत्नों से उपार्जित करना चाहिये वह पौरुष इष्ट साधनताज्ञान से उत्पन्न होता है, " मम इदम् इष्ट साधनम्" इस प्रकार का इष्टसाधनताज्ञान आप्त पुरुषों के उपदेश से होता है અહંદ ભગવાની ભારતી વાણુને નમસ્કાર કરીને મુનિવતી હું ઘાસીલાલ શ્રીજબૂદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિની પ્રકાશિકા વ્યાખ્યા પ્રારંભ કરૂં છું છા પ્રસ્તાવનાનો ગુજરાતી અનુવાદ આ પરમ આસાર સંસાર રૂપ ઘેર જંગલમાં આમ-તેમ ભટકવાથી ઉત્પન્ન થયેલ અનેક જાતના દુઃખ દાવાનલે થી અત્યંત સન્તતથયેલા નાના-મોટા બધાં પ્રાણીઓ સર્વથા ત્યાજ્ય એ દુઃખને સમૂળ વિનષ્ટ કરવામાં અસમર્થ થઈને અકામ નિર્જરાયાંગથી દુઃખના મૂલ નિદાનભૂત કર્મોને હળવા કરીને તેમને ત્યજવાની ઈચ્છાથી સમસ્ત કર્મોના ક્ષય-લક્ષણ નિરતિશય સુખસ્વરૂપ મેક્ષપદની અભિલાષા કરે છે, તે મોક્ષપદનું પરમ પુરૂષાર્થ સ્વરૂપ હોવાથી સમ્યગુ જ્ઞાન, સમ્યગ , દશન, સમ્યક ચારિત્ર લક્ષણ રત્નત્રય વિષયક પરમપરુષ લક્ષણ પરમયોથી દરેકને ઉપાર્જન કરવું જોઈએ. તે પૌરુષ ઈષ્ટ સાધન તાજ્ઞાનથી ઉત્પન્ન થાય छ. "मम इदं इष्ट साधनम् " तनुष्ट साधतना ज्ञान मास पुरुषांना उपहेशथी थाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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