Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 834
________________ KARANWAR दश वर्षसहस्राणि प्रत्येकशरीरमायलसतिपय पश तहमाण सभापतो निगोदस्य जघन्येनाप्युत्कर्षतोऽप्यन्तर्मुहूर्स चादरनिगोदस्य जघन्यत उत्कर्षतोऽन्यन्तर्मुहूर्त बादरत्रसकायस्य जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्त्तमुत्कर्षतस्त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि ॥ सम्प्रत्येतेषामेव सा-3 मान्यतो बादरादीनां दशानामपर्याप्तानां स्थिति चिचिन्तयिपः सत्रदशकमाह-बायरअपज्जत्तगस्सणं भंते।' इत्यादि पाठसिद्ध, सर्वत्र जघन्यत उत्कर्षतश्चान्तर्मुहूर्ताभिधानात् ॥ साम्प्रतमेतेषामेव पर्याप्तानां स्थिति चिन्तयति–'बादरपजत्तगस्स णं भंते' इ. त्यादि, जघन्यतः सर्वत्राप्यन्तर्मुहूर्तमुत्कर्षतः सामान्यतो बादरस्य त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाण्यन्तर्मुहूत्ततॊनानि, अपर्याप्तकावस्थाभाविनाऽ-10 न्तर्मुहूर्तेनोनत्वात् , एवं बादरपृथिवीकायिकपर्याप्तकस्य द्वाविंशतिर्वर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूत्तोनानि, बादराप्कायिकस्य पर्याप्तकस्य सप्त वर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूत्ततॊनानि बादरतेजस्कायिकपर्याप्तकस्य त्रीणि रात्रिन्दिवानि अन्तर्मुहून्तोनानि, बादरवायुकायिकपर्याप्तकस्य त्रीणि वर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूतानानि, बादरवनस्पतिकायपर्याप्तकस्य दश वर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूर्तोनानि, प्रत्येकवादरवनस्पतिकायिकपर्यासकस्यापि दश वर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूर्तोनानि, सामान्यतो निगोदपर्याप्रकस्य बादरनिगोदपर्याप्तकस्य च जघन्यतोऽप्यन्तर्मुहूर्तमुत्कर्षतोऽप्यन्तर्मुहूर्स, बादरत्रसकायिकपर्याप्तस्य जपन्यतोऽन्तर्मुहूर्तमुत्कर्षतनयर्मिशत्सागरोपमाणि अन्तर्मुहूर्तोनानि ॥ साम्प्रतं कायस्थितिमाह-- बायरेणंभंते। बायरेत्ति कालओ केवचिरं होति?, जह. अंतो० उक्कोसेणं असंखेनं कालं असंखेजाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ खेसओ अंगुलस्स असंखेजतिभागो, बायरपुढविकाइयआउतेउवाउ० पत्तेयसरीरयादरवणस्सहकाइयस्स बायरनिओयस्स० [पायरचणस्सइस्स जह %

Loading...

Page Navigation
1 ... 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908 909 910 911 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935