Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 866
________________ | काकाशप्रदेशप्रमाणत्वात् , तेभ्यो वनस्पतिकायिका अनन्तगुणाः, अनन्तलोकाकाशप्रदेशप्रमाणत्वात् , उपसंहारमाह-सत्त'मित्यादि। सुगमम् ।। इति श्रीमलयगिरिविरचिताचा जीवाभिगमका प्रतिनीधिप्रतिपत्तिः समाप्ता ॥ 18+CRE अथ नवमी प्रतिपत्तिः उक्ता नवविधप्रतिपत्तिः, सम्प्रति क्रमप्राप्तां दशविधप्रतिपत्ति प्रतिपादयतितत्थ णं जे ते एवमासु वसविधा संसारसमावण्णगा जीवा ते एवमाहंसु तंजहा-पढमसमयएगिदिया अपढमसमयएगिदिया पढमसमयबेइंदिया अपढमसमयबेइंदिया जाव पढमसमयपंथि दिया अपढमसमयपंचिंदिया, पढमसमयएगिदियस्स णं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता?, गोयमा! जहण्णेणं एक समयं उक्को० एक, अपढमसमयएगिदियस्स जहणणं खुड्डागं भवग्गहणं समऊणं उदो० यावीसं वाससहस्साइं समकणाई, एवं सव्वेसिं पढमसमयिकाणं जहपणेणं एको समओ उक्कोसेणं एको समओ, अपढम. जहपणेणं खुङ्गागं भवग्गहणं समऊणं उन्कोसेणंजा जस्स ठिती सा समऊणाजाव पंचिंदियाणं तेत्तीसंसागरोवमाइं समऊणाई ॥संचिट्ठणा पढमसमझ्यस्स जहण्णेणं एक समयं उक्कोसेणं एक समयं, अपढमसमयकाणं जहण्णणं खुडागं भवग्गहणं समऊर्ण

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