Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अधिक सूत्र के ज्ञाता थे। स्मृति की दुर्बलता, परावर्तन की न्यूनता, धृति का ह्रास और परम्परा की व्यवच्छिति आदि अनेक कारणों से श्रुतसाहित्य का अधिकांश भाग नष्ट हो गया था। विस्मृत श्रुत को संकलित व संग्रहीत करने का प्रयास किया गया। देवर्द्धिगणी ने अपनी प्रखर प्रतिभा से उसको संकलित कर पुस्तकारूढ किया। पहले जो माथुरी
और वल्लभी वाचनाएं हुई थी, उन दोनों वाचनाओं का समन्वय कर उनमें एकरूपता लाने का प्रयास किया गया। जिन स्थलों पर मतभेद की अधिकता रही वहाँ माथुरी वाचना को मूल में स्थान देकर वल्लभी वाचना के पाठों को पाठान्तर में स्थान दिया। यही कारण है कि आगमों के व्याख्याग्रन्थों में यत्र तत्र 'नागार्जुनीयास्तु पठन्ति' इस प्रकार निर्देश मिलता है।
____ आगमों को पुस्तकारूढ करते समय देवर्द्धिगणी ने कुछ मुख्य बातें ध्यान में रखी। आगमों में जहाँ-जहाँ समान पाठ आये हैं उनकी वहाँ पुनरावृत्ति न करते हुए उनके लिए विशेष ग्रन्थ या स्थल का निर्देश किया गया जैसे-'जहा उववाइए, जहा पण्णवणाए'। एक ही आगम में एक बात अनेक बार आने पर जाव शब्द का प्रयोग करके उसका अन्तिम शब्द सूचित कर दिया है जैसे 'णागकुमारा जाव विहरंति' तेणं कालेणं जाव परिसा णिग्गया। इसके अतिरिक्त भगवान् महावीर के पश्चात् की कुछ मुख्य-मुख्य घटनाओं को भी आगमों में स्थान दिया। यह वाचना वल्लभी में होने के कारण 'वल्लभी वाचना' कही गई। इसके पश्चात आगमों की फिर कोई सर्वमान्य वाचना नहीं हुई। वीरनिर्वाण की दसवीं शताब्दी के पश्चात् पूर्वज्ञान की परम्परा विच्छिन्न हो गई।
उक्त रीति से आगम-साहित्य का बहुतसा भाग लुप्त होने पर भी आगमों का कुछ मौलिक भाग आज भी सुरक्षित है। ... प्रश्न हो सकता है कि वैदिक वाङ्मय की तरह जैन आगम साहित्य पूर्णरूप से उपलब्ध क्यों नहीं है ? वह विच्छिन्न क्यों हो गया ? इसका मूल कारण यह है कि देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण के पूर्व आगम साहित्य लिखा नहीं गया। वह श्रुतिरूप में ही चलता रहा। प्रतिभासम्पन्न योग्य शिष्य के अभाव में गुरु ने वह ज्ञान शिष्य को नहीं बताया जिसके कारण श्रुत-साहित्य धीरे-धीरे विस्मृत होता गया। यह सब होते हुए भी वर्तमान में उपलब्ध जो श्रुतसाहित्य है वह भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। उसमें प्रभु महावीर की वाणी अपने बहुत कुछ अंशों में अब भी प्राप्त होती है। यह कुछ कम गौरव की बात नहीं है। जीवाभिगम की विषय-वस्तु
प्रस्तुत आगम में नौ प्रतिपत्तियाँ (प्रकरण) हैं। प्रथम प्रतिपत्ति में जीवाभिगम और अजीवाभिगम का निरूपण किया गया है। अभिगम शब्द का अर्थ परिच्छेद अथवा ज्ञान है।
आत्मतत्त्व-इस अनन्त लोकाकाश में या अखिल ब्रह्माण्ड में जो भी चराचर या दृश्य-अदृश्य पदार्थ या सद्रूप वस्तु-विशेष है वह सब जीव या अजीव-इन दो पदों में समाविष्ट है। मूलभूत तत्त्व जीव और अजीव है। शेष पुण्य-पाप आत्रव-संवर निर्जरा बंध और मोक्ष-ये सब इन दो तत्त्वों के सम्मिलन और वियोग की परिणतिमात्र हैं। अन्य आस्तिक दर्शनों ने भी इसी प्रकार दो मूलभूत तत्त्वों को स्वीकार किया है । वेदान्त ने ब्रह्म और माया के रूप में इन्हें माना है। सांख्यों ने पुरुष और प्रकृति के रूप में, बौद्धों ने विज्ञानघन और वासना के रूप में, वैदिकदर्शन
१.
वल्लहिपुरम्मि नयरे देवढिपमुहेण समणसंघेण। पुत्थइ आगमो लिहिओ नवसयअसीआओ ववीराओ॥ जदित्य णं लोगे तं सव्वं दुपदोआरं,तं जहा-जीवच्चेव अजीवच्चेव।
२.
-स्थानांग द्वितीय स्थान
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