Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पापियों का पापकर्म, जलचर, स्थलचर चतुष्पद जीव ] [13 पापियों का पापकर्म ४-तं च पुण करेंति केइ पावा असंजया अविरया अणिहुयपरिणामदुप्पयोगा पाणवहं भयंकर बहुविहं बहुप्पगारं परदुक्खुप्पायणपसत्ता इमेहि तसथावरेहि जोवेहि पडिणिविद्वा / किं ते? ४-कितने ही पातकी, संयमविहीन, तपश्चर्या के अनुष्ठान से रहित, अनुपशान्त परिणाम 'वाले एवं जिनके मन, वचन और काम का व्यापार दुष्ट है, जो अन्य प्राणियों को पीड़ा पहुँचाने में आसक्त रहते हैं तथा अस और स्थावर जीवों की रक्षा न करने के कारण वस्तुतः जो उनके प्रति द्वेषभाव वाले हैं, वे अनेक प्रकारों से, विविध भेद-प्रभेदों से भयंकर प्राणवध-हिंसा किया करते हैं। वे विविध भेद-प्रभेदों से कैसे हिंसा करते हैं ? जलचर जीव ५–पाठीण-तिमि-तिमिगल-अणेगझस-विविहजातिमंडुक्क-दुविहकच्छम-नक्क' -मगर-दुविहगाह-दिलिवेढय-मंडुय-सीमागार-पुलुय-सुसुमार-बहुप्पगारा जलयरविहाणा कते य एवमाई। ५-पाठीन-एक विशेष प्रकार की मछली, तिमि-बड़े मत्स्य, तिमिगल-महामत्स्य, अनेक प्रकार की मछलियाँ, अनेक प्रकार के मेंढक, दो प्रकार के कच्छप-अस्थिकच्छप और मांसकच्छप, मगर-सुडामगर एवं मत्स्यमगर के भेद से दो प्रकार के मगर, ग्राह-एक विशिष्ट जलजन्तु, दिलिवेष्ट-पूछ से लपेटने वाला जलीय जन्तु, मंडूक, सीमाकार, पुलक आदि ग्राह के प्रकार, सुसुमार, इत्यादि अनेकानेक प्रकार के जलचर जीवों का घात करते हैं। विवेचन-पापासक्त करुणाहीन एवं अन्य प्राणियों को पीड़ा पहुँचाने में प्रानन्द का अनुभव करने वाले परुष जिन-जिन जीवों का घात करते हैं, उनमें से प्रस्तुत पाठ में केवल उल्लेख किया गया है / जलीय जीव इतनी अधिक जातियों के होते हैं कि उन सब के नामों का निर्देश करना कठिन ही नहीं, असंभव-सा है। उन सब का नामनिर्देश प्रावश्यक भी नहीं है। अतएव उल्लिखित नामों को मात्र उपलक्षण ही समझना चाहिए / सूत्रकार ने स्वयं ही 'एवमाई' पद से यह लक्ष्य प्रकट कर दिया है। स्थलचर चतुष्पद जीव ६-कुरंग-रुरु-सरभ- चमर-संबर- उरम्भ-समय- पसय-गोण-रोहिय-हय- गय-खर-करभ-खम्गबाणर-गवय- विग-सियाल- कोल-मज्जार-कोलसुणह- सिरियंदलगावत्त• कोकंतिय-गोकण्ण-मिय-माहिसविघग्घ-छगल-दीविय-साण-तरच्छ-अच्छ-भल्ल-सदूल-सीह-चिल्लल चउप्पयविहाणाकए य एवमाई। ६-कुरंग और रुरु जाति के हिरण, सरभ-अष्टापद, चमर-नील गाय, संबर-सांभर, उरभ्र-मेढा, शशक-खरगोश, पंसय-प्रशय-वन्य पशुविशेष, गोण - बैल, रोहित-पशुविशेष, घोड़ा, हाथी, गधा, करभ-ऊंट, खड्ग-गेंडा, वानर, गवय-रोझ, वृक-भेड़िया, शृगाल-सियारगीदड़, कोल-शूकर, मार्जार-बिलाव-बिल्ली, कोलशुनक-बड़ा शूकर, श्रीकंदलक एवं आवर्त्त 1. पाठान्तर-नक्कचक्क। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org