Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 1.0] [प्रश्नण्याकरणसूत्र : शु. 1, अ. 3 बेहा वातिग-गरणारोसंपरिबड़ा पेच्छिज्जता य गगरजणेण बज्झणेवस्थिया पणेज्जति पयरमझेण किवणकलुणा प्रत्ताणा असरणा प्रणाहा प्रबंधवा बंधविप्पहीणा विपिक्खिता दिसोदिसि मरणभयुविग्गा प्राघायणपडिदुवार-संपाविया अधण्णा सूलग्गविलग्गभिण्णदेहा / ७४-अठारह प्रकार के चोरों एवं चोरी के प्रकारों के कारण उनके अंग-अंग पीडित कर दिये जाते हैं, उनकी दशा अत्यन्त करुणाजनक होती है / उनके प्रोष्ठ, कण्ठ, गला, तालु और जीभ सूख जाती है, जीवन की आशा उनकी नष्ट हो जाती है। वे बेचारे प्यास से पीडित होकर पानी मांगते हैं पर वह भी उन्हें नसीब नहीं होता। वहाँ कारागार में वध के लिए नियुक्त पुरुष उन्हें धकेल कर या घसीट कर ले जाते हैं / अत्यन्त कर्कश पटह–ढोल बजाते हुए, राजकर्मचारियों द्वारा कियाए जाते हुए तथा तीव्र क्रोध से भरे हुए राजपुरुषों के द्वारा फांसी या शूली पर चढ़ाने के लिए दृढतापूर्वक पकड़े हुए वे अत्यन्त ही अपमानित होते हैं / उन्हें प्राणदण्डप्राप्त मनुष्य के योग्य दो वस्त्र पहनाए जाते हैं / एकदम लाल कनेर को माला उनके गले में पहनायी जाती है, जो वध्यदूतसी प्रतीत होती है अर्थात् यह सूचित करती है कि इस पुरुष को शीघ्र ही मृत्युदण्ड दिया जाने वाला है। मरण की भीति के कारण उनके शरीर से पसीना छूटता है, उस पसीने की चिकनाई से उनके भीग जाते हैं--समग्र शरीर चिकना-चिकना हो जाता है। कोयले आदि के दुर्वर्ण चूर्ण से उनका शरीर पोत दिया जाता है। हवा से उड कर चिपटी हई धलि से उनके केश रूखे एवं धलभरे हो जाते हैं। उनके मस्तक के केशों को कुसुभी-लाल रंग से रंग दिया जाता है। उनको जीवन-जिन्दा रहने की आशा छिन्न-नष्ट हो जाती है। अतीव भयभीत होने के कारण वे डगमगाते हुए चलते हैं-दिमाग में चक्कर आने लगते हैं और वे वधकों-जल्लादों से भयभीत बने रहते हैं. उनके शरीर के तिल-तिल जितने छोटे-छोटे टुकड़े कर दिये जाते हैं। उन्हीं के शरीर में से काटे हुए और रुधिर से लिप्त मांस के छोटे-छोटे टुकड़े उन्हें खिलाए जाते हैं। कठोर एवं कर्कश स्पर्श वाले पत्थर आदि से उन्हें पीटा जाता है। इस भयावह दृश्य को देखने के लिए उत्कंठित, पागलों जैसी नर-नारियों की भीड़ से वे घिर जाते हैं / नागरिक जन उन्हें (इस अवस्था में) देखते हैं। मृत्युदण्डप्राप्त कैदी की पोशाक उन्हें पहनाई जाती है और नगर के बीचों-बीच हो कर ले जाया जाता है। उस समय वे चोर दीन-हीन-अत्यन्त दयनीय दिखाई देते हैं / त्राण रहित, अशरण, अनाथ, बन्धु-बान्धवविहीन, भाई-बंदों द्वारा परित्यक्त वे इधर-उधर-विभिन्न दिशाओं में नजर डालते हैं (कि कोई सहायक-संरक्षक दीख जाए) और (सामने उपस्थित) मौत के भय से अत्यन्त घबराए हुए होते हैं / तत्पश्चात् उन्हें प्राघातन-वधस्थल पर पहुँचा दिया जाता है और उन अभागों को शूली पर चढ़ा दिया जाता है, जिससे उनका शरीर चिर जाता है / विवेचन–प्राचीन काल में चोरी करना कितना गुरुतर अपराध गिना जाता था और चोरी करने वालों को कैसा भीषण दण्ड दिया जाता था, यह तथ्य इस वर्णन से स्पष्ट हो जाता है / आधुनिक काल में भी चोरों को भयंकर से भयंकर यातनाएँ भुगतनी पड़ती हैं। कल्पना कीजिए उस बीभत्स दृश्य की जब वध्य का वेष धारण किए चोर नगर के बीच जा रहा हो! उसके शरीर पर प्रहार पर प्रहार हो रहे हों, अंग काटे जा रहे हों और उसी का मांस उसी को खिलाया जा रहा हो, नर-नारियों के झुण्ड के अण्ड उस दृश्य को देखने के लिए उमड़े हुए हों ! उस समय अभागे चोर की मनोभावनाएँ किस प्रकार की होती होंगी ! मरण सामने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org