Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ ब्रह्मचर्य की पांच भावनाएँ] [225 चउटुिं च महिलागुणा, ण वण्ण-देस-जाइ-कुल-रूव-णाम-णेवत्थ-परिजण-कहा इस्थियाणं, अण्णा वि य एवमाइयाओ कहाओ सिंगार-कलुणाओ तव-संजम-बंभचेर-घाओवघाइयाओ अणुचरमाणेणं बंभचेरंण कहियव्या, ण सुणियन्वा, ण चितियम्वा / एवं इत्थीकहाविरइसमिइजोगेणं भाविओ भवइ अंतरप्पा आरयमण-विरयगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते / १४६-दूसरी भावना है स्त्रोकथावर्जन / इसका स्वरूप इस प्रकार है-नारीजनों के मध्य में अनेक प्रकार की कथा नहीं करनी चाहिए अर्थात् नाना प्रकार की बातें नहीं करनी चाहिए, जो बातें विब्बोक'—स्त्रियों को कामुक चेष्टाओं से और विलास-स्मित, कटाक्ष आदि के वर्णन से युक्त हों, जो हास्यरस और शृगाररस की प्रधानता वाली साधारण लोगों को कथा की तरह हों, जो मोह उत्पन्न करने वाली हों। इसी प्रकार द्विरागमन--गौने या विवाह सम्बन्धी बातें भी नहीं करनी चाहिए। स्त्रियों के सौभाग्य-दुर्भाग्य को भी चर्चा-वार्ता नहीं करनी चाहिए। महिलाओं के चौसठ गुणों (कलाओं), स्त्रियों के रंग-रूप, देश, जाति, कुल, रूप-सौन्दर्य, भेद-प्रभेद-पद्मिनी, चित्रणी, हस्तिनी, शंखिनी आदि प्रकार, पोशाक तथा परिजनों सम्बन्धी कथाएँ तथा इसी प्रकार की जो भी अन्य कथाएँ शृगाररस से करुणता उत्पन्न करने वाली हों और जो तप, संयम तथा ब्रह्मचर्य का घात-उपधात करने वाली हों, ऐसी कथाएँ ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले साधुजनों को नहीं कहनी चाहिए। ऐसी कथाएँ-बातें उन्हें सुननी भी नहीं चाहिए और उनका मन में चिन्तन भी नहीं करना चाहिए। इस प्रकार स्त्रीकथाविरति-समिति के योग से भावित अन्तःकरण वाला, ब्रह्मचर्य में अनुरक्त चित्त वाला तथा इन्द्रिय विकार से विरत रहने वाला, जितेन्द्रिय साधु ब्रह्मचर्य से गुप्तसुरक्षित रहता है। तृतीय भावना-स्त्रियों के रूप-दर्शन का त्याग-- १५०-तइयं-णारीणं हसिय-भणिय-चेट्टिय-विप्पेक्खिय-गइ-विलास-कोलियं, विब्बोइय-णट्टगीय-वाइय-सरीर-संठाण-वण्ण-कर-चरण-णयण-लावण्ण- रूब-जोधण- पयोहरा-धर-वस्थालंकार-भूस- - पाणि य, गुज्झोकासियाई, अण्णाणि य एवमाइयाई तव-संजम-बंभचेर-घाओवधाइयाइं अणुचरमाणेणं बंभचेरं ण चक्खुसा, ण मणसा, ण वयसा पत्थेयव्वाइं पावकम्माइं। एवं इत्थीरूवविरइ-समिइजोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा आरयमणविरयगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते। 1. विवोक का लक्षण इष्टानामर्थानां प्राप्तावभिमानगर्वसम्भूतः / स्त्रीणामनादरकृतो बिब्बोको नाम विज्ञेयः॥ ---अभय. टीका प्र. 139 2. विलास का स्वरूप--- स्थानासनगमनानां, हस्तभ्र नेत्रकर्मणां चैव। उत्पद्यते विशेषो यः श्लिष्टः स तु विलासः स्यात // अभय, टीका पृ. 139 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org