Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 236] [प्रश्नव्याकरणसून:शु. 2, अ. 5 अलाभ-रोग-तणफासा, मल-सक्कार परीसहा / पण्णा अण्णाण सम्मत्तं, इय बावीस परीसहा / / अर्थात् (1) क्षुधा (भूख) (2) पिपासा–प्यास (3) शीत--ठंड (4) उष्ण (गर्मी) (5) दंश-मशक (डांस-मच्छरों द्वारा संताया जाना) (6) अचेल (निर्वस्त्रता या अल्प एवं फटे-पुराने वस्त्रों का कष्ट) (7) अरति-संयम में अरुचि (8) स्त्री (6) चर्या (10) निषद्या (11) शय्याउपाश्रय (12) आक्रोश (13) वध-मारा-पीटा जाना (14) याचना (15) अलाभ लेने की इच्छा होने पर भी आहार आदि आवश्यक वस्तु का न मिलना (16) रोग (17) तृणस्पर्श-कंकर-कांटा आदि की चुभन (18) जल्ल-मल को सहन करना (16) सत्कार-पुरस्कार प्रादर होने पर अहंकार और अनादर की अवस्था में विषाद होना (22) प्रज्ञा--विशिष्ट बुद्धि का अभिमान (21) अज्ञान-विशिष्ट ज्ञान के अभाव में खेद का अनुभव और (22) अदर्शन / इन बाईस परीषहों पर विजय प्राप्त करने वाला संयमी विशिष्ट निर्जरा का भागी होता है / 23. सूत्रकृतांग-अध्ययन–प्रथम श्रुतस्कन्ध के पूर्वलिखित सोलह अध्ययन और द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन मिल कर तेईस होते हैं / द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन ये हैं(१) पुण्डरीक (2) क्रियास्थान (3) आहारपरिज्ञा (4) प्रत्याख्यानक्रिया (5) अनगारश्रुत (6) आर्द्र - कुमार और (7) नालन्दा / 24. चार निकाय के देवों के चौबीस अवान्तर भेद हैं-१० भवनवासी, 8 वाणव्यन्तर, 5 ज्योतिष्क और सामान्यतः 1 वैमानिक / मतान्तर से मूलपाठ में आए 'देव' शब्द से देवाधिदेव अर्थात् तीर्थकर समझना चाहिए, जिनकी संख्या चौवीस प्रसिद्ध है। 25. भावना---एक-एक महाव्रत की पाँच-पाँच भावनाएँ होने से पाँचों की सम्मिलित पच्चीस भावनाएँ हैं। 26. उद्देश-दशाश्रुतस्कन्ध के 10, बृहत्कल्प के 6 और व्यवहारसूत्र के 10 उद्देशक मिलकर छब्बीस हैं। 27. गुण अर्थात् साधु के मूलगुण सत्ताईस हैं-५ महावत, 5 इन्द्रियनिग्रह, 4 क्रोधादि कषायों का परिहार, भावसत्य, करणसत्य, योगसत्य, क्षमा, विरागता, मन का, वचन का और काय का निरोध, ज्ञानसम्पन्नता, दर्शनसम्पन्नता, चारित्रसम्पन्नता, वेदनादि सहन और मारणान्तिक उपसर्ग का सहन क्षा से व्रतषट्क (पाँच महाव्रत और रात्रिभोजन-त्याग), पाँच इन्द्रियनिग्रह, भावसत्य करणसत्य, क्षमा, विरागता, मनोनिरोध, वचननिरोध, कायनिरोध, छह कायों की रक्षा, योगयुक्तता, वेदनाध्यास (परीषहसहन) और मारणान्तिक संलेखना, इस प्रकार 27 गुण अनगार के होते हैं।' 1. क्यछक्कं 6 इंदियाणं निग्गहो 11 भाव-करणसच्चं च 13 / खमया 14 बिरागयावि य 15 मणमाईणं निरोहो य 18 / / कायाण छक्क 24 जोगम्मि जुत्तया 25 वेयणाहियासणया 26 / तह मरणंते संलेहणा य 27, एए-ऽणगारगुणा / / -- अभय. टीका, पृ. 145 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org