Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 316
________________ कांचना, रक्त-सुभद्रा] [277 दोनों सुग्रीवों को नगरी से बाहर निकाल दिया। दोनों में घोर युद्ध हुआ, लेकिन हार-जीत किसी की भी न हुई / नकली सुग्रीव को किसी भी सूरत से हटते न देख कर असली सुग्रीव विद्याधरों के राजा महाबली हनुमानजी के पास पाया और उन्हें सारा हाल कहा / हनुमानजी वहाँ आए, किन्तु दोनों सुग्रीवों में कुछ भी अन्तर न जान सकने के कारण कुछ भी समाधान न कर सके और अपने नगर को वापिस लौट गए। __ असली सुग्रीव निराश होकर श्रीरामचन्द्रजी की शरण में पहुंचा। उस समय रामचन्द्रजी पाताललंका के खरदूषण से संबंधित राज्य कि सुव्यवथा कर रहे थे। सुग्रीव उनके पास जब पहुँचा और उसने अपनी दुःखकथा उन्हें सुनाई तो श्रीराम ने उसे आश्वासन दिया कि "मैं तुम्हारी विपत्ति दूर करूंगा।' उसे अत्यन्त व्याकुल देख कर श्रीराम और लक्ष्मण ने उसके साथ प्रस्थान कर दिया। वे दोनों किष्किन्धा के बाहर ठहर गए और असली सुग्रीव से पूछने लगे-''वह नकली सुग्रीव कहाँ है ? तुम उसे ललकारो और भिड़ जायो उसके साथ / " असली सुग्रीव द्वारा ललकारत ही युद्धरसिक नकली सुग्रीव भी रथ पर चढ़ कर लड़ाई के लिये युद्ध के मैदान में प्रा डटा / दोनों में बहुत देर तक जम कर युद्ध होता रहा पर हार या जीत दोनों में से किसी की भी न हुई / राम भी दोनों सुग्रीवों का अन्तर न जान सके / नकली सुग्रीव से असली सुग्रीव बुरी तरह परेशान हो गया। अतः निराश होकर वह पुनः श्रीराम के पास आकर कहने लगा--"देव ! अापके होते मेरी ऐसी दुर्दशा हुई / आप स्वयं मेरी सहायता करें।" राम ने उससे कहा-"तुम भेदसूचक ऐसा कोई चिह्न धारण कर लो और उससे पुनः युद्ध करो / मैं अवश्य ही उसे अपने किए का फल चखाऊंगा।" असली सुग्रीव ने वैसा ही किया / जब दोनों का युद्ध हो रहा था तो श्रीराम ने कृत्रिम सुग्रीव को पहिचान कर बाण से उसका वहीं काम तमाम कर दिया। इससे सुग्रीव प्रसन्न होकर श्रीराम और लक्ष्मण को स्वागतपूर्वक किष्किन्धा ले गया। वहाँ उनका बहुत ही सत्कार-सम्मान किया / सुग्रीव अब अपनी पत्नी तारा के साथ प्रानन्द से रहने लगा। इस प्रकार राम और लक्ष्मण की सहायता से सुग्रीव ने तारा को प्राप्त किया और जीवन भर उनका उपकार मानता रहा। कांचना कांचना के लिये भी संग्राम हुआ था, लेकिन उसकी कथा अप्रसिद्ध होने से यहाँ नहीं दी जा रही है। कई टीकाकार मगधसम्राट् श्रेणिक की चिलणा रानी को ही 'कांचना' कहते हैं / अस्तु, जो भी हो, कांचना भी युद्ध की निमित्त बनी है। रक्तसुभद्रा सुभद्रा श्रीकृष्ण की बहन थी / वह पांडुपुत्र अर्जुन के प्रति रक्त-पासक्त थी, इसलिये उसका नाम 'रक्तसुभद्रा' पड़ गया / एक दिन वह अत्यन्त मुग्ध होकर अर्जुन के पास चली आई। श्रीकृष्ण को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने सुभद्रा को वापस लौटा लाने के लिये सेना भेजी। सेना को युद्ध के लिये आती देख कर अर्जुन किंकर्तव्यविमूढ़ होकर सोचने लगा-श्रीकृष्णजी के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359