Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 232] [प्रश्नव्याकरणसूत्र : 7. 2, अ.५ बावीसं परिसहा य / तेवीसए सूयगडज्झयणा / चउवासविहा देवा। पण्णवीसाए भावणा। छम्वीसा दसाकष्पक्वहाराणं उद्देसणकाला / सत्तावीसा अणगारगुणा। अट्ठावीसा आयारकप्पा / एगुणतीसा पावसुया। तीसं मोहणीयद्वाणा। एगतीसाए सिद्धाइगुणा / बत्तीसा य जोगसंग्गहे। तित्तीसा आसायणा। एक्काइयं करित्ता एगुत्तरियाए वुड्डीए तीसाओ जाव उ भवे तिगाहिया विरइपणिहीसु य एवमाइसु बहुसु ठाणेसु जिणपसत्थेसु अवितहेसु सासयभावेसु अट्ठिएसु संकं कंख णिराकरित्ता सद्दहए सासणं भगवओ अणियाणे अगारवे अलुद्ध अमूढमणवयणकायगुत्ते। 154 - श्री सुधर्मा स्वामी ने अपने प्रधान अन्तेवासी जम्बू को संबोधन करते हुए कहाहे जम्बू ! जो मूर्छा--ममत्वभाव से रहित है, इन्द्रियसंवर तथा कषायसंवर से युक्त है एवं प्रारंभपरिग्रह से तथा क्रोध, मान, माया और लोभ से रहित है, वही श्रमण या साधु होता है / 1. अविरति रूप एक स्वभाव के कारण अथवा भेद की विवक्षा न करने पर असंयम सामान्य रूप से एक है। 2. इसी प्रकार संक्षेप विवक्षा से बन्ध्रन दो प्रकार के हैं- रागबन्धन और द्वेषबन्धन / 3. दण्ड तीन हैं-- मनोदण्ड, वचनदण्ड, कायदण्ड / गौरव तीन प्रकार के हैं-ऋद्धिगौरव, रसगौरव, सातागौरव / गुप्ति तीन प्रकार की है--- मनोगुप्ति, बचनगुप्ति, कायगुप्ति / विराधना तीन प्रकार की है- ज्ञान की विराधना, दर्शन को विराधना और चारित्र की विराधना / 4. कषाय चार हैं- क्रोध, मान, माया, लोभ / ध्यान चार हैं- आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, शुक्लध्यान / संज्ञा चार प्रकार की है—आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा / विकथा चार प्रकार की है-स्त्रीकथा, भोजनकथा, राजकथा और देशकथा ! 5. क्रियाएँ पाँच हैं—कायिकी, प्राधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी। समितियाँ पाँच हैं-ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदान-निक्षेपणसमिति और परिष्ठापनिकासमिति / इन्द्रियाँ पाँच हैं—स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्रामेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रोत्रेन्द्रिय / महाव्रत पाँच हैं--अहिंसामहाव्रत, सत्यमहाव्रत, अस्तेयमहाव्रत, ब्रह्मचर्यमहाव्रत और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org