Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ अहिंसा भगवती के साठ नाम] - [163 الله الله لس (20) समृद्धि–सब प्रकार को सम्पन्नता से युक्त जीवन को आनन्दित करने वाली / (21) ऋद्धि-लक्ष्मीप्राप्ति का कारण / (22) वृद्धि-पुण्य-धर्म की वृद्धि का कारण / (23) स्थिति–मुक्ति में प्रतिष्ठित करने वाली। (24) पुष्टि--पुण्यवृद्धि से जीवन को पुष्ट बनाने वाली अथवा पाप का अपचय कर के पुण्य का उपचय करने वाली / / नन्दा--स्व और पर को प्रानन्द-प्रमोद प्रदान करने वाली। (26) भद्रा-स्व का और पर का भद्र-कल्याण करने वाली / (27) विशुद्धि आत्मा को विशिष्ट शुद्ध बनाने वाली / (28) लब्धि-केवलज्ञान आदि लब्धियों का कारण / (29) विशिष्ट दृष्टि-विचार और प्राचार में अनेकान्तप्रधान दर्शन वाली। कल्याण-कल्याण या शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का कारण। (31) मंगल-पाप-विनाशिनी, सुख उत्पन्न करने वाली, भव-सागर से तारने वाली / (32) प्रमोद-स्व-पर को हर्ष उत्पन्न करने वाली। (33) विभूति-आध्यात्मिक ऐश्वर्य का कारण / रक्षा-प्राणियों को दुःख से बचाने को प्रकृतिरूप, आत्मा को सुरक्षित बनाने वाली। (35) सिद्धावास-सिद्धों में निवास कराने वाली, मुक्तिधाम में पहुँचाने वाली, मोक्षहेतु / (36) अनास्रवाते हुए कर्मों का निरोध करने वाली। (37) केवलि-स्थानम्- केवलियों के लिए स्थानरूप / (38) शिव-सुख स्वरूप, उपद्रवों का शमन करने वाली। समिति-सम्यक शील सदाचार स्वरूपा, समीचीन आचार / संयम-मन और इन्द्रियों का निरोध तथा जीवरक्षा रूप / (42) शोलपरिग्रह-सदाचार अथवा ब्रह्मचर्य का घर–चारित्र का स्थान / (43) संवर–आस्रव का निरोध करने वाली। (44) गुप्ति-मन, वचन, काय की असत प्रवत्ति को रोकना। (45) व्यवसाय-विशिष्ट-उत्कृष्ट निश्चय रूप / उच्छ्य--प्रशस्त भावों की उन्नति–वृद्धि, समुदाय / यज्ञ-भावदेवपूजा अथवा यत्न-जीवरक्षा में सावधानतास्वरूप / (48) आयतन--समस्त गुणों का स्थान / / अप्रमाद-प्रमाद–लापरवाही आदि का त्याग / (50) आश्वास-प्राणियों के लिए प्राश्वासन--तसल्ली। विश्वास-समस्त जीवों के विश्वास का कारण / अभय-प्राणियों को निर्भयता प्रदान करने वाली, स्वयं आराधक को भी निर्भय बनाने वाली। (53) सर्वस्य अमाघात-प्राणिमात्र की हिंसा का निषेध अथवा अमारी-घोषणास्वरूप / 47) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org