Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 144] [प्रश्नव्याकरणसूत्र: श्रु. 1, अ. 5 11. महेच्छा-असीम इच्छा या असीम इच्छा का कारण / / 12. प्रतिबन्ध-किसी पदार्थ के साथ बँध जाना, जकड़ जाना / जैसे भ्रमर सुगन्ध की लालच में कमल को भेदन करने की शक्ति होने पर भी भेद नहीं सकता, कोश में बन्द हो जाता है (और कभी-कभी मृत्यु का ग्रास बन जाता है)। इसी प्रकार स्त्री, धन आदि के मोह में जकड़ जाना, उसे छोड़ना चाह कर भी छोड़ न पाना / 13. लोभात्मा-लोभ का स्वभाव, लोभरूप मनोवृत्ति / 14. महद्दिका--(महधिका)-महती आकांक्षा अथवा याचना / 15. उपकरण-जीवनोपयोगी साधन-सामग्री। वास्तविक आवश्यकता का विचार न करके ऊलजलूल-अनापसनाप साधनसामग्री एकत्र करना / 16. संरक्षणा--प्राप्त पदार्थों का आसक्तिपूर्वक संरक्षण करना। 17. भार--परिग्रह जीवन के लिए भारभूत है, अतएव उसे भार नाम दिया गया है। परिग्रह के त्यागी महात्मा हल्के-लधुभूत होकर निश्चिन्त, निर्भय विचरते हैं। 18. संपातोत्पादक-नाना प्रकार के संकल्पों-विकल्पों का उत्पादक, अनेक अनर्थों एवं उपद्रवों का जनक / 16. कलिकरण्ड-कलह का पिटारा / परिग्रह कलह, युद्ध, वैर, विरोध, संघर्ष आदि का प्रमुख कारण है, अतएव इसे 'कलह का पिटारा' नाम दिया गया है / 20 प्रविस्तर--धन-धान्य आदि का विस्तार / व्यापार-धन्धा आदि का फैलाव। यह सब परिग्रह का रूप है। 21. अनर्थ---परिग्रह नानाविध अनर्थों का प्रधान कारण है। परिग्रह-ममत्वबुद्धि से प्रेरित एवं तृष्णा और लोभ से ग्रस्त होकर मनुष्य सभी अनर्थों का पात्र बन जाता है / उसे भीषण यातनाएँ भुगतनी पड़ती हैं। 22. संस्तव-संस्तव का अर्थ है परिचय वारंवार निकट का सम्बन्ध / संस्तव मोह को-- आसक्ति को बढ़ाता है / अतएव इसे संस्तव कहा गया है / 23. प्रगुप्ति या अकोत्ति अपनी इच्छाओं या कामनाओं का गोपन न करना, उन पर नियन्त्रण न रखकर स्वच्छन्द छोड़ देना-बढ़ने देना / 'अगुप्ति' के स्थान पर कहीं 'अकीत्ति' नाम उपलब्ध होता है / परिग्रह अपकीत्ति-अपयश का कारण होने से उसे अकीत्ति भी कहते हैं / 24. प्रायास-प्रयास का अर्थ है-- खेद या प्रयास / परिग्रह जुटाने के लिए मानसिक और शारीरिक खेद होता है, प्रयास करना पड़ता है / अतएव यह प्रायास है / 25. अवियोग–विभिन्न पदार्थों के रूप में-धन, मकान या दुकान आदि के रूप में जो. परिग्रह एकत्र किया है, उसे विछुड़ने न देना / चमड़ी चली जाए पर दमड़ी न जाए, ऐसी वृत्ति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org