Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. 1, अ. 2 है। वह न जाने कितने लोगों को, कितने काल तक मिथ्या धारणाओं का शिकार बनाता रहता है। ऐसी धारणाएं व्यक्तिगत जीवन को कलुषित करती हैं और साथ ही सामाजिक जीवन को भी निरंकुश, स्वेच्छाचारी बना कर विनष्ट कर देती हैं / अतएव वैयक्तिक असत्य की अपेक्षा दार्शनिक असत्य हजारों-लाखों गुणा अनर्थकारी है। यहाँ दार्शनिक असत्य के ही कतिपय रूपों का उल्लेख किया गया है। शून्यवाद- सर्वप्रथम शून्यवादी के मत का उल्लेख किया गया है। बौद्धदर्शन अनेक सम्प्रदायों में विभक्त है / उनमें से एक सम्प्रदाय माध्यमिक है। यह शून्यवादी है / इसके अभिमतानुसार किसी भी वस्तु की सत्ता नहीं है। जैसे स्वप्न में अनेकानेक दृश्य दृष्टिगोचर होते हैं किन्तु जागृत होने पर या वास्तव में उनकी कहीं भी सत्ता नहीं होती। इसी प्रकार प्राणी भ्रम के वशीभूत होकर नाना पदार्थों का अस्तित्व समझता है, किन्तु भ्रमभंग होने पर वह सभी कुछ शून्य मानता है। यहाँ विचारणीय यह है कि यदि समग्र विश्व शून्य रूप है तो शून्यवादी स्वयं भी शून्य है या नहीं ? शून्यवादी यदि शून्य है तो इसका स्पष्ट अर्थ यह निकला कि शून्यवादी कोई है ही नहीं। इसी प्रकार उसके द्वारा प्ररूपित शून्यवाद यदि सत् है तो शून्यवाद समाप्त हो गया और शून्यवाद असत् है तो भी उसकी समाप्ति ही समझिए। इस प्रकार शून्यवाद युक्ति से विपरीत तो है ही, प्रत्यक्ष अनुभव से भी विपरीत है। पानी पीने वाले की प्यास बुझ जाती है, वह अनुभव सिद्ध है। किन्तु शून्यवादी कहता है-पानी नहीं, पीने वाला भी नहीं, पीने की क्रिया भी नहीं और प्यास की उपशान्ति भी नहीं ! सब कुछ शून्य है। शून्यवाद के पश्चात् अनात्मवादी नास्तिकों के मत का उल्लेख किया गया है। इनके कतिपय मन्तव्यों का भी मूलपाठ में दिग्दर्शन कराया गया है। अनात्मवादियों की मान्यता है कि जीव अर्थात् आत्मा की स्वतन्त्र एवं कालिक सत्ता नहीं है / जो कुछ भी है वह पांच भूत ही हैं / पृथ्वी, जल, तेजस् (अग्नि), वायु और आकाश, ये पाँच भूत हैं / इनके संयोग से शरीर का निर्माण होता है / इन्हीं से चैतन्य की उत्पत्ति हो जाती है। प्राणवायू के कारण शरीर में हलन-चलन-स्पन्दन आदि क्रियाएँ होती हैं / चैतन्य शरीराकार परिणत भूतों से उत्पन्न होकर उन्हीं के साथ नष्ट हो जाता है। जैसे जल का बुलबुला जल से उत्पन्न होकर जल में ही विलीन हो जाता है, उसका पृथक अस्तित्व नहीं है, उसी प्रकार चैतन्य का भी पंच भूतों से अलग अस्तित्व नहीं है / अथवा जैसे धातकी पुष्प, गुड़, आटा प्रादि के संयोग से उनमें मादकशक्ति उत्पन्न हो जाती है, वैसे ही पंच भूतों के मिलने से चैतन्यशक्ति उत्पन्न हो जाती है। ___ जब प्रात्मा की ही पृथक् सत्ता नहीं है तो परलोक के होने की बात ही निराधार है। अतएव न जीव मर कर फिर जन्म लेता है, न पुण्य और पाप का अस्तित्व है / सुकृत और दुष्कृत का कोई फल किसी को नहीं भोगना पड़ता। ___नास्तिकों को यह मान्यता अनुभवप्रमाण से बाधित है, साथ ही अनुमान और प्रागम प्रमाणों से भी बाधित है। यह निर्विवाद है कि कारण में जो गुण विद्यमान होते हैं, वही गुण कार्य में आते हैं / ऐसा कदापि नहीं होता कि जो गुण कारण में नहीं हैं, वे अकस्मात् कार्य में उत्पन्न हो जाएँ / यही कारण है कि मिष्ठान्न तैयार करने के लिए गुड़, शक्कर आदि मिष्ट पदार्थों का उपयोग किया जाता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org