Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 54] [प्रश्नध्याकरणसूत्र : शु. 1, अ. 3 अदत्तादान के तीस नाम ६१-तस्स य णामाणि गोण्णाणि होति तीसं, तं जहा–१ चोरिक्कं 2 परहडं 3 प्रदत्तं 4 करिकर्ड 5 परलाभो 6 प्रसंजमो 7 परधणम्मि गेही 8 लोलिक्कं 9 तक्करतणं ति य 10 अवहारो 11 हत्थलहुत्तणं 12 पावकम्मकरणं 13 तेणिक्कं 14 हरणविष्पणासो 15 प्रादियणा 16 लुपणा षणाणं 17 अप्पच्चयो 18 प्रवीलो 16 अखेको 20 खेको 21 विषखेवो 22 कूडया 23 कुलमसी य 24 कंखा 25 लालप्पणपत्थणा य 26 माससणाय वसणं 27 इच्छामुच्छा य 28 तण्हागेही 26 णियडि. कम्मं 30 अप्परच्छति विय। तस्स एयाणि एवमाईणि गामधेज्जाणि होति तीसं अदिण्णादाणस्स पावकलिकलुस-कम्मबहुलस्स प्रणेगाई। ६१-पूर्वोक्त स्वरूप वाले प्रदत्तादान के गुणनिष्पन्न-यथार्थ तीस नाम हैं / वे इस प्रकार हैं 1. चोरिक्क-चौरिक्य--परकीय वस्तु चुरा लेना। 2. परहड-परहृत-दूसरे से हरण कर लेना। 3. अदत्त-अदत्त-स्वामी के द्वारा दिए विना लेना। 4. कूरिकडं--ऋरिकृतम्---क्रूर लोगों द्वारा किया जाने वाला कर्म / 5. परलाभ-दूसरे के श्रम से उपाजित वस्तु आदि लेना / 6. प्रसंजम-चोरी करने से असंयम होता है-संयम का विनाश हो जाता है, अत: यह असंयम है। 7. परधणंमि गेही-परधने गृद्धि-दूसरे के धन में प्रासक्ति-लोभ-लालच होने पर चोरी की जाती है, अतएव इसे परधनगृद्धि कहा है / 8. लोलिक्क-लौल्य-परकीय वस्तु संबंधी लोलुपता। 6. तक्करत्तण-तस्करत्व-तस्कर-चोर का काम / 10. अवहार-अपहार-स्वामी इच्छा विना लेना। 11. हत्थलहुतण-हस्तलघुत्व-चोरी करने के कारण जिसका हाथ कुत्सित है उसका कर्म अथवा हाथ की चालाकी / 12. पावकम्मकरण-पापकर्मकरण- चोरी पाप कर्म है, उसे करना पापकर्म का आचरण करना है। 13. तेणिक्क-स्तेनिका-चोर--स्तेन का कार्य / 14. हरण विप्पणास-हरणविप्रणाश-परायी वस्तु को हरण करके उसे नष्ट करना। 15. प्रादियणा-आदान-परधन को ले लेना। 16. धणाणं लुपना-धनलुम्पता-दूसरे के धन को लुप्त करना / 27. अप्पच्च-अप्रत्यय-अविश्वास का कारण / 18. ओवील-प्रवपीड-दूसरे को पीडा उपजाना, जिसकी चोरी की जाती है, उसे पीडा अवश्य होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org