Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पुर के लिए शस्त्र-सज्जा व युख-स्थल की बीमरसता] [89 युद्ध के लिए शस्त्र-सज्जा ६४-प्रवरे रणसीसलद्धलक्खा संगामंसि अइवयंति सग्णद्धबद्धपरियर-उप्पोलिय-चिंधपट्टगहियाउह-पहरणा माढिवर-धम्मगुडिया, प्राविद्धजालिया कवयकंकडइया उरसिरमुह-बद्ध-कंठतोणमाइयवरफलगर चियपहकर-सरहसखरचावकरकरंछिय-सुणिसिय - सरबरिसचडकरगनुयंत * घणचंड वेगधाराणिवायमग्गे प्रणेगधणुमंडलग्गसंधित-उच्छलियसत्तिकणग-वामकरगहिय-खेडगणिम्मल-णिक्किट्ठखग्गपहरंत कोंत-तोमर-चक्क-गया-परसु-मूसल-लंगल-सूल-लउल-भिडमालसब्बल-पट्टिस-चम्मेठ्ठ-दुघण - मोट्ठिय-मोग्गर-वरफलिह-जंत - पत्थर-दुहण- तोण-कुवेणी - पीढकलिएईलीपहरण मिलिमिलिमिलंतखिप्पंत-विज्जुज्जल-विरचिय-समप्पहणमतले फुडपहरणे महारणसंखभेरिवरतूर-पउर-पडपडहाहयणिगाय-गंभीरणंदिय पक्खुभिय-विउलघोसे हय-गय-रह-जोह-तुरिय-पसरिय-रउद्धततमंधकार-बहुले कायर-गर-णयण-हिययवाउलकरे। ६४-दूसरे-कोई-कोई नृपतिगण युद्धभूमि में अग्रिम पंक्ति में लड़कर विजय प्राप्त करने वाले, कमर कसे हुए, कवच-वख्तर धारण किये हुए और विशेष प्रकार के चिह्नपट्ट-परिचयसूचक बिल्ले मस्तक पर बाँधे हुए, अस्त्र-शस्त्रों को धारण किए हुए, प्रतिपक्ष के प्रहार से बचने के लिए ढाल से और उत्तम कवच से शरीर को वेष्टित किए हुए, लोहे की जाली पहने हुए, कवच पर लोहे के कांटे लगाए हुए, वक्षस्थल के साथ ऊर्ध्वमुखी बाणों की तूणीर-बाणों की थैली कंठ में बाँधे हुए, हाथों में पाश-शस्त्र और ढाल लिए हुए, सैन्यदल की रणोचित रचना किए हुए, कठोर धनुष को हाथों में पकड़े हए, हर्षयुक्त, हाथों से (बाणों को) खींच कर की जाने वाली प्रचण्ड वेग से वरसती हुई मूसलधार वर्षा के गिरने से जहाँ मार्ग अवरुद्ध हो गया है, ऐसे युद्ध में अनेक धनुषों, दुधारी तलवारों, फेंकने के लिए निकाले गए त्रिशूलों, बाणों, बाएँ हाथों में पकड़ी हुई ढालों, म्यान से निकाली हुई चमकती तलवारों, प्रहार करते हुए भालों, तोमर नामक शस्त्रों, चक्रों, गदाओं, कुल्हाड़ियों, मूसलों, हलों, शूलों, लाठियों, भिंडमालों, शब्बलों-लोहे के वल्लमों, पट्टिस नामक शस्त्रों, पत्थरों-गिलोलों, द्रघणों-विशेष प्रकार के भालों, मौष्टिकों-मुट्टी में पा सकने वाले एक प्रकार के शस्त्रों, मुद्गरों, प्रबल पागलों, गोफणों, द्रु हणों (कर्करों) बाणों के तूणीरों, कुवेणियों-नालदार बाणों एवं आसन नामक शस्त्रों से सज्जित तथा दुधारी तलवारों और चमचमाते शस्त्रों को आकाश में फेंकने से आकाशतल बिजली के समान उज्ज्वल प्रभा वाला हो जाता है / उस संग्राम में प्रकटस्पष्ट शस्त्र-प्रहार होता है। महायुद्ध में बजाये जाने वाले शंखों, भेरियों, उत्तम वाद्यों, अत्यन्त स्पष्ट ध्वनि वाले ढोलों के बजने के गंभीर आघोष से वीर पुरुष हर्षित होते हैं और कायर पुरुषों को क्षोभ-धबराहट होती है। वे (भय से पीडित होकर) कांपने लगते हैं। इस कारण युद्धभूमि में होहल्ला होता है। घोड़े, हाथी, रथ और पैदल सेनाओं के शीघ्रतापूर्वक चलने से चारों ओर फैली-- उड़ती धूल के कारण वहाँ सघन अंधकार व्याप्त रहता है। वह युद्ध कायर नरों के नेत्रों एवं हृदयों को आकुल-व्याकुल बना देता है / युद्ध-स्थल की बीभत्सता ६५-विलुलियउक्कड-वर-मउड-तिरीड-कुडलोडुदामाडोविया पागड-पडाग-उसियज्झय-वेजयंतिचामरचलंत-छत्तंधयारगंभीरे हयहेसिय-हथिगुलुगुलाइय-रहघणघणाइय-पाइक्कहरहराइय-प्रष्फो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org