Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ मृषावाद के नामान्तर [51 __ असत्यभाषी को इस भव में निन्दा और तिरस्कार का पात्र बनना पड़ता है। असत्यभाषण करके जिन्हें धोखा दिया जाता अथवा हानि पहुँचाई जाती है, उनके साथ वैर बँध जाता है और कभीकभी उस बैर की परम्परा अनेकानेक भवों तक चलती रहती है। असत्यभाषी के अन्तर में यदि स्वल्प भी उज्ज्वलता का अंश होता है तो उसके मन में भी संक्लेश उत्पन्न होता है / जिसे ठगा जाता है उसके मन में तो संक्लेश होता ही है। असत्यभाषी को अपनी प्रामाणिकता प्रकट करने के लिए अनेक प्रकार के जाल रचने पड़ते हैं, पूर्तता कपट का प्राश्रय लेना पड़ता है। यह क्रूरता से परिपूर्ण है। नीच लोग ही असत्य का आचरण करते हैं / साधुजनों द्वारा निन्दनीय है / परपीड़ाकारी है। कृष्णलेश्या से समन्वित है। असत्य दुर्गति में ले जाता है और संसार-परिभ्रमण को वृद्धि करने वाला है / असत्यभाषी अपने असत्य को छिपाने के लिए कितना ही प्रयत्न क्यों न करे, अन्त में प्रकट हो जाता है। जब प्रकट हो जाता है तो प्रसत्यभाषी की सच्ची बात पर भी कोई विश्वास नहीं करता / वह अप्रतीति का पात्र बन जाता है। 'परपीलाकारगं' कह कर शास्त्रकार ने असत्य एक प्रकार की हिंसा का ही रूप है, यह प्रदर्शित किया है। मृषावाद के नामान्तर ४५---तस्स य णामाणि गोण्णाणि होति तीसं / तं जहा 1 प्रलियं 2 सढं 3 पणज्जं 4 मायामोसो 5 असंतगं 6 कूडकवडमवत्युगं च 7 णिरत्थयमपत्थयं च 8 विहेसगरहणिज्ज . अणज्जुगं 10 कक्कणा य 11 वंचणा य 12 मिच्छापच्छाकडंच 13 साई उ 14 उच्छण्णं 11 उक्कूलं च 16 अट 17 प्रमभक्खाणं च 18 किठिवसं 19 वलयं 20 महणं च 21 मम्मणं च 22 णूमं 23 णिययी 24 प्रपच्चनो 25 असमयो 26 असच्चसंधत्तणं 27 विवक्खो 28 प्रवहीयं 26 उवहिप्रसुद्ध 30 अवलोवोत्ति। प्रविय तस्स एयाणि एवमाइयाणि पामधेज्जाणि होति तीसं, सावजस्स प्रलियस्स वइजोगस्त अणेगाई। ४५---उस असत्य के गुणनिष्पन्न अर्थात् सार्थक तीस नाम हैं / वे इस प्रकार हैं 1. अलीक 2. शठ 3. अन्याय्य (अनार्य) 4. माया-मृषा 5. असत्क 6. कूटकपटप्रवस्तुक 7. निरर्थकप्रपार्थक 8. विद्वेष-गर्हणीय 9. अनुजुक 10. कल्कना 11. वञ्चना 12. मिथ्यापश्चात्कृत 13. साति 14. उच्छन्न 15. उत्कूल 16. आत्तं 17. अभ्याख्यान 18. किल्विष 16. वलय 20. गहन 21. मन्मन 22. नूम 23. निकृति 24. अप्रत्यय 25. असमय 26. असत्यसंधत्व 27. विपक्ष 28. अपधीक 26. उपधि-अशुद्ध 30. अपलोप। सावद्य (पापयुक्त) अलीक वचनयोग के उल्लिखित तीस नामों के अतिरिक्त अन्य भी अनेक नाम हैं। विवेचन-प्रस्तुत पाठ में असत्य के तीस सार्थक नामों का उल्लेख किया गया है / अन्त में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org