Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ मृवावादी ] विवेचन-इन तीस नामों से असत्य के विविध रूपों का एवं उसकी व्यापकता का पता चलता है। मृषावादी ४६-तं च पुण वयंति केई प्रलियं पावा असंजया अविरया कवडकुडिलकड़यचडुलभावा कुद्धा लुद्धा भया य हस्सट्ठिया य सक्खी चोरा चारमडा खंडरक्खा जियजयकरा य गहियगहणा कक्ककुरुगकारगा, कुलिंगी उहिया वाणियगा य कूडतुलकूडमाणो कूडकाहायणोक्जीविया पडगारका, कलाया, कारइज्जा बंचणपरा चारियचाड्यार-णगरगुत्तिय-परिचारगा दुट्टवाइसूयगणवलमणिया य पुग्धकालियवयणदच्छा साहसिया लहुस्समा असच्चा गारविया असच्चट्ठावणाहिवित्ता उच्चच्छंदा प्रणिग्गहा प्रणियत्ता छदेणमुक्कवाया भवंति प्रलियाहिं जे अविरया / ४६-यह असत्य कितनेक पापी, असंयत-संयमहीन, अविरत–सर्वविरति और देशविरति से रहित, कपट के कारण कुटिल, कटुक और चंचल चित्त वाले, क्रुद्ध--क्रोध से अभिभूत, लुब्धलोभ के वशीभूत, स्वयं भयभीत और अन्य को भय उत्पन्न करने वाले, हँसी-मजाक करने वाले, झूठी गवाही देने वाले, चोर, गुप्तचर-जासूस, खण्डरक्ष---राजकर लेने वाले-चुगी वसूल करने वाले, जूना में हारे हुए--जुबारी, गिरवी रखने वाले-गिरवी के माल को हजम करने वाले, कपट से किसी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहने वाले, मिथ्या मत वाले कुलिंगी–वेषधारी, छल करने वाले, बनिया-वणिक, खोटा नापने-तोलने वाले, नकली सिक्कों से आजीविका चलाने वाले, जुलाहे, सुनार-स्वर्णकार, कारीगर, दूसरों को ठगने वाले, दलाल, चाटुकार-खुशामदी, नगररक्षक, मैथुनसेवी-स्त्रियों को बहकाने वाले, खोटा पक्ष लेने वाले, चुगलखोर, उत्तमर्ण-साहूकार के ऋण संबंधी तकाजे से दबे हुए अधमर्ण-कर्जदार, किसी के बोलने से पूर्व ही उसके अभिप्राय को ताड़ लेने वाले, साहसिक सोच-विचार किए विना ही प्रवृत्ति करने वाले, निस्सत्त्व-अधम, हीन, सत्पुरुषों का अहित करने वाले दुष्ट जन, अहंकारी, असत्य की स्थापना में चित्त को लगाए रखने वाले, अपने को उत्कृष्ट बताने वाले, निरंकुश, नियमहीन और विना विचारे यद्वा-तद्वा बोलने वाले लोग, जो असत्य से विरत नहीं हैं, वे (असत्य) बोलते हैं। विवेचन-मूल पाठ अपने आप में हो स्पष्ट है। इस पर अधिक विवेचन की आवश्यकता नहीं है। - असत्यभाषी जनों का यहाँ उल्लेख किया गया है / असत्यभाषण वही करते हैं जो संयत और विरत नहीं होते। जिनका जीवन संयमशील है और जो पापों से विरत हैं, असत्य उनके निकट भी नहीं फटकता। असत्य के मूलतः चार कारण हैं-क्रोध, लोभ, भय और हास्य / क्रोध से अभिभूत मानव विवेक-विचार से विहीन हो जाता है। उसमें एक प्रकार का उन्माद उत्पन्न हो जाता है। तब सत्य-असत्य के भान से रहित होकर कुछ भी बोल जाता है। लोभ से ग्रस्त मनुष्य असत्य का सेवन करने से परहेज नहीं करता। लोभ से अंधा आदमी असत्य सेवन को अपने साध्य की सिद्धि का अचूक साधन मानता है। भय से पीड़ित लोग भी असत्य का आश्रय लेकर अपने दुष्कर्म के दंड से बचने का प्रत्यत्न करते हैं। उन्हें यह समझ नहीं होती कि कृत्त दुष्कर्म पर पर्दा डालने के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org