Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ गौतमस्वामी का समागम एवं भासह एवं पण्णवे एवं परवेइ-एवं खल देवाणुपिया! समणस्म भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आणंदे णामं समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिम जाष अणवकंखमाणे विहरत | तरण तस्स गोयमस्स बहुजणस्म अंतिए एयमझें सोच्चा णिसम्म अयमेयाहवे अज्झथिए चिंतिए मणोग संकप्पे समुप्पमित्या-तं गच्छमि णं आणंदं समणोवासयं पासामि, एवं संपेहेइ संपेहित्ता जेणेच कोल्लाए सण्णिवेसे जेणेव आणंदे समणोवासए जेणेव पोसहसाला तेणेव उपागच्छह । अर्थ-भगवती में कहे अनुसार भगवान गौतम स्वामी ने भिक्षाचर्या के लिए भ्रमण कर आहार-पानी ग्रहण किया तथा लौटते समय कोल्लाक सनिवेश से न अधिक दूर न अधिक निकट पधारते हुए बहुत-से लोगों से यह बात सुनी कि घमण मगवान महावीर स्वामी के अंतेवासी आनंद श्रमणोपासक अपश्चिममारणतिको संलेखना कर मत्य की चाहना न करते हुए यहां रह रहे हैं। यह बात सुन कर गौतमस्वामी ने विचार किया कि मुझे मी आनन्द को देखना चाहिए । तब वे जहाँ पौषधशाला थी, वहां आए। सरणं से आणंदे समणोवासए भगवं गोयम एज्जमाणं पासइ पासित्ता हह जाव हियए, भगवं गोयम वंदइ णमंसह वंदित्ता णमंसित्ता एवं पयासी-एवं खलु भंते ! अहं इमेणं उरालेणं जाव धमणिसंतए जाए, ण संचाएमि देवाणुप्पियरस अंतियं पाउम्भवित्ता ण तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पाए अभिवंदिस्सए । तुम्भे गं भंते ! इच्छाकारेणं अणमिओपणे इओष एह, जाणं देवाणुप्पियाणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पाएसु चंदामि णमंसामि । तए णं से भगर्व गोयमे जेणेव आणंदे समणोवासए तेणेव उवागच्छह ॥ सू.१५॥ अर्थ-भगवान गौतम स्वामी को पौषधशाला में पधारते देख कर आनन्द अमणो. पासक बहुत प्रसन्न एवं हषित हुए, वंदना नमस्कार किया और कहा-'हे भगवन् ! में कठोर तपस्या करने के कारण अत्यंत दुर्बल एवं कृश हो गया है। आपके समीप आकर आपश्री के चरण-स्पर्श कर सक, ऐसी तामय मुझ में नहीं रही । अतएव यदि आप मेरे सन्निकट पधारने की कृपा करें, तो चरण-रज का स्पर्श कर वंदना नमस्कार कई। तब गौतम स्वामी आनन्द के निकट पधारे।

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142