Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री उपासकदाग सूत्र-३
अज्झथिए ५ अहोणं हमे पुरिसे अणारिए जाव समायरह, जेणं ममं जेई पुतं साओ गिहाओ तहेव जाव कणीयसं जाव आयंचा । तुम्भेऽवि य णं पच्छइ साओ गिहाओ णीणेत्ता मम अग्गओ पाएसए । सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिण्डिसएत्ति कटु उद्धाइए । सेऽपि घ आगासे उप्पए। मएऽवि य खंभे आसाइए महया महया सहणं कोलाहले कए।
"हे--माता ! न जाने कौन व्यक्ति नीलकमल के समान प्रभा वाला सहा ले कर मेरे पास आया और कुपित होकर कहने लगा कि 'हे चलनीपिता! यदि हसत-मंग नहीं करेगा, तो मैं तेरे ज्येष्ठ-पुत्र को मार कर तुम पर उबलता हुआ रक्त-मांस छिड़कुंगा पावत् उसने बड़े पुत्र को मारा। फिर भी मैं धर्म में स्थिर रहा. तब उसने मंझले पुत्र को मार डालने की धमकी दी और मार डाला, फिर छोटे पुत्र को भी यावत मार डाला। तब मो वह नहीं माना और आपको मार डालने का कहने लगा, तब मैंने विचार किया कि यह कोई अनार्य पापी व्यक्ति है, जिसने मेरे तीनों पुत्रों मार डाला और मन देवमह के समान पूज्या माता को भी मारना चाहता है । मैं इसे पकड़ लूं'-ऐसा विचार कर मैने उसे पकड़ना चाहा, तो वह हाथ नहीं आया। मैं खमा ही पपद पाया। इसीलिए मैंने यह कोलाहल किया है।"
वत भंग हुआ प्रायश्चित्त लो
तए णं सा भद्दा सत्यवाहि चुलणीपिणं समणोवामयं एवं पयासी-"णो खलु केइ पुरिसे तब जाव कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ जीणेइ, पीणेत्ता व अग्गओ घाए । एम णं कर पुरिसे उपसरगं करेह । एस णं तुमे विदरिमणे दिडे, तं गं तुम इयाणि भग्गव्यए भग्गणियमे भग्गपोसहे विहरसि । णं तुम पुत्ता ! एयरस ठाणरस भालोएहि जाष पटिवजाहि।" लए णं चुलीपिया समणीवासए अम्मगाए महाए सस्थवाहीए तहत्ति एयमढे विणएणं पहिसणेह, पहिसुणेता सरस ठाणस्स आलोएइ जाष पडिधज्जइ॥ सू. २८॥
अपं- तब मना सार्थवाही ने अपने पुत्र से कहा--'घुलनीपिता ! न तो किसी