Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उपसंहार
दसण्ह-वि पणरसमे संघच्छरे घमाणाणं चिंता । दसह वि वीस वासाई समणोषासयपरियाओ। एवं खल जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं सत्समरस अंगस्स उवासगदसाणं दसमस्स अजयणस्स अयम? पण्णत्ते। उवासगदमाओ समत्ताओ।
उवासगदसाणं सत्तमस्स अंगरस एगो मुयखंधो दम अजायणा एक्का सरगा दससु षेप दिवसेसु उदिस्सिज्जति सओ सुयखंघो समुहिरिसज्जा अणुण्ण. विजइ दोसु दिवसेसु अंगं तहेव ॥
___ अर्थ-वसों ही श्रावकों को पन्द्रहवें वर्ष में निवृत्ति धारण करने की इच्छाई। वसों ने बीस वर्ष की श्रमणोपासक-पर्याय का पालन किया। श्री उपासकांगका उपसंहार करते हुए भगवान् सुधर्मा स्वामी अपने प्रथम प्रधान शिष्य जम्बूस्वामी से फरमाते हैं कि सातवें अंग उपासकवशांग का भगवान् ने यह अर्थ फरमाया है। इस उपासगदशा नामक सातवें अंग सूत्र में एक तस्कंध तपा रस अध्ययन कहे गए हैं। इनका अध्ययन वस विनों में पूरा होता है।
॥ श्री उपासकदशांग सूत्र समाप्त ।