Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पी सपासकबाग सूत्र--
कल्लाणं मंगल देवयं इयं जाव पज्जुबासणिज्जे तच्चकम्मसंपया पउने । गं तुम बज्जाहि जाव पज्जुवासेज्जाहि । पाडिहारिएणं पीसफलगसिज्जासंधारण उवणिमंतेज्जाहि।' दोच्चपि तच्चपि एर्ष वयह बात्ता जामेव विसं पाउन्भूए तामेष दिसं पडिगए।
"हे देवानप्रिय ! कल यहाँ महामाहन पधारेंगे को केवलज्ञान-दर्शम के धारक, मूत वर्तमान और भविष्य के सम्पूर्ण ज्ञाता, अरिहंत, जिन, केवली, सर्वज्ञ-सर्वदर्शी, तीनों लोक में वंदनीय महामहिम, त्रिलोक पूजित, सभी देव-बानव और मनुष्य सहित सारे लोकवासियों द्वारा वे अचनीय हैं, वंदनीय हैं, सत्कार-सम्मान के योग्य है, कल्याणकारी है, विघ्नों का नाश करने के कारण मंगलकारी हैं, देवाधिदेव हैं, ज्ञान रूप हैं यावत् पर्युपासना के योग्य तथा विशुद्ध तपप्रभाव से जिन्हें अनंत चतुष्टय, अष्ट महाप्रासहाय, चीतीस तियादि की प्राप्ति हुई है, ऐसे एक महापुरुष पधारेंगे। तुम उनके पास जा कर बंदना-नमस्कार करना यावत् पर्युपासना करना । पाट-बाजोट, स्थान, संस्तारक आदि इच्छित वस्तुओं का आमन्त्रण देना यावत् सेवा करना।" दो-तीन बार उपरोक्त कपन कह कर देव जिस विशा से आया था, उसी विशा में लौट गया।
तए णं तस्स सहालगुत्तस्स आजीविओषासगस्स तेणं देवेणं एवं बुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अजमस्थिए ४ समुप्पण्णे-एवं खलु ममं धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते से णं महामाहणे उप्पण्णणापासणधरे जाच मुच्चकम्मसंपया संपत्ते से गं कई हव्यमागच्छिस्सा | तए णं तं अहं बंदिस्सामि जाव पज्जुवासिस्मामि पटिहारिगणं जाव उवणिमंतिरसामि ।
अर्थ-देय के द्वारा उपरोक्त कथन सुन कर सकडालपुत्र ने विचार किया कि मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक मंलिपुत्र गोशालक महामाहन यावत् अतिशयघारी हैं। वे कल यहाँ पधारें। । में उन्हें बन्दना-नमस्कार यावत् पर्यपासना करूंगा। प्रतिहारिक पोठफलक आदि का निमन्त्रण करूंगा।
विवेधन- यामि देव ने तो भगवान महावीर स्वामी के लिए महामाहान, मम मादि पदों का प्रयोग किया था, पर सकारालपुत्र ने गोशालक के लिए सारा वृतान्त समना ।