Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 103
________________ १० श्री उपासको सूत्र --: तए णं समणे भगवं महावीरे सहालपुत्तं आजीविओघासगं एवं वयासी'सद्दालपुत्ता ! अइ णं तुभं केइ पुरिसे वायाहयं वा पक्केल्लयं वा कोलाल मंड अवहरेज्जा वा विक्खिरेज्जा था भिदेउजा वा अच्छिदेजा वा परिद्ववेज्जा वा अरिंगमित्ताए वा भारियाए सद्धिं बिउलाई भोग भोगाई मुंजमाणे विहरेज्जा, तस्स र्ण पुरिसस किं दंडवतेज्जासि ? भंते ! " अहं णं ते पुरिसं आओसेज्जा वा होज्जा वा पंचेज्जा वा महेज्जा वा तज्जेज्जा वा तालेज्जा वा निच्छोरेज्जा वा जिन्भलेखा या अकाले श्रेव जीवियाओ बबरोवेज्जा | 17 अर्थ-तब भगवान् ने सकडालपुत्र से पूछा - " हे सकडालपुत्र ! यदि कोई पुरुष धूप में सूखे हुए इन कच्चे और पके बरतनों को अपहरण कर ले, मिट दे, फेंक दे, फोड़ दे, छेद करवे, अथवा फेंक दे और तेरी अग्निमित्रा भार्या के साथ भोग भोगे, तो तुम उस पुरुष को वण्ड होगे क्या ?” तब सकडालपुत्र ने कहा ## हे भगवन् ! ऐसे पुरुष पर में आक्रोश करूंगा, डण्डे आदि से मारूंगा, रस्सी आदि से बांधूंगा, पीहूंगा, थप्पड़-मुषके आदि से ताडना तर्जना करूंगा, उसे फटकारूँगा, तिरस्कार करूंगा यावत् जीवन- रहिस कर दूंगा। "सहालता । जो खलु तुम्भ केइ पुरिसे वायायं वा पक्केल्लयं बा फोलाल भण्यं भवरह या आप परिवेश वा अग्निमित्ताए वा भारियाए सद्धि बिउलाई भोग भोगाई भुंजमाणे बिरड, णो वा तुमं मं पुरिसं आओसेज्जसि वा हणिज्जसि वा जाव अकाले शेष जीवियाओ षबरोवेज्जसि । जड़ णत्थि उहाणे इ वा जान परक्कमे इ वा शिपया सबभावा, अड़ पण तुन्भ केड़ पुरिसे वायाहयं जाट परिवेइ वा अग्गिमित्ताए वा जाब बिहरह। तुमं ता तं पुरिसं जाओसेसि वा जान बबरोवेसि तो जं बदसि पात्थि उट्टाणे इ वा जाव विधा सबभावा तं ते मिच्छा ।" अर्थ-तब भगवान् से फरमाया- "हे सकबालपुत्र ! तुम्हारे मतानुसार न तो कोई पुरुष तुम्हारे कच्चे-पके बरतन चुराता यावत् फेकता है और न कोई अग्निमित्रा मार्या

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