Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 122
________________ रेवती पति को मोहित करने गई विवेचन- रेवती का महामतक से कहने का पाशय यह है कि- तुम धर्मसाधना कर रहे हो, वह भविष्य में स्वर्ग मोर मोक्ष प्राप्त होने वाले सुम्न की कल्पना से कर रहे हो । परन्तु भवो मुन्द्र की मिप्या कामना से वर्तमान सुन्न को त्यागना नहीं चाहिए 1 छोड़ो इस साधना को पौर चलो मेरे माघ । में तुम्हें मभी सुख दूंगी। तए णं से महासयए ममणोपासप रेवइए गाहावाणीए एपमई णो आदाइ णो परियाणाइ अणाढाइममाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्माणोषगए बिह रह । तए णं सा रेषई गाहावइणी महासययं समणोवासयं दोच्चपि तच्चपि एवं वयासी- मोतं व भणइ ! मोऽधि नहेष जाव अणाराइज्जमाणे अपरियाणमाणे बिहरा । मए गं सा रेवई गाहावाणी महासयरर्ण समणोषासपणं अणादाइज्जमाणी अपरिपाणिज्जमाणी जामेव दिसं पाउन्भूया तामेष दिसं परिगया। ___ अर्थ-रेवती गायापत्नी के उपरोक्त वचन महाशतक श्रमणोपासक ने स्वीकर नहीं किया, मन से भी बाहना नहीं की और चुपचाप धर्माराधना में रस रहे । रेवती ने पह बात दो-तीन बार कही, तब भी वह चुपचाप रहा । महाशतक से उपेक्षित हो कर रेवती अपने स्थान चली गई। तए णं से महासपए समणावामए पहम उपासगपग्मि उपसंपत्तिा विहरह । परमं महासुतं जाब एक्कारमऽधि । लए गं से महासयए समणोबासए तेणं उरालेणं जाब किसे धमणिसंनए जाए 1 नए णं सस्म महासययरस समणोगमयस्स अग्णया कयापुठवरतावरसकाले धम्मजागरि जागरमाणस्स अयं बजास्थिए ४ एवं खल अहं इमेणं उरालणं जहा आणंदो तग अपच्छिममारणलियमलहणासियसरीरे भत्ताणपटियाइक्विए काम अणमस्खमाणे हिरह। अर्थ- महाशतकजो ने प्रथम उपासक-प्रतिमा की पपावत् आराधना की। इस प्रकार ग्यारह उपासक-प्रतिमाओं का सम्यग् पालन किया । कठोर तपश्चर्या के कारण महाशतक का शरीर अस्थि और शिराओं का जाल मात्र रह गया । एकबार धर्म जागरणा करते हुए उन्हें विचार हुआ कि अब शरीर बहुत कृषा हो गया है, अतः मुझे अपश्चिमभारणांतिक संलेखना-संथारा करना उचित है। उन्होंने संथारा कर लिया।

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