Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashakdashang Sutra
Author(s): Ghisulal Pitaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
तू दुखी हो कर नरक में जाएगी
सुन कर महाशतक को क्रोध आ गया । उन्होंने अधिज्ञान से उपयोग लगाया और अवधिज्ञान से उसका आगामी मव देख कर कहने लगे-“अरे हे रेवती 1 विसको कोई चाहना नहीं करता, उस मौत को तू चाहने वालो है, यावत् तुसे वचन-विवेक भी नहीं रहा । तू निश्चय ही आज से सातवीं रात्रि में अलस रोग से आतंध्यान युक्त हो कर असमाधिपूर्वक काल कर के पहलो नरक के लोलयच्चय नरकावास में चौरासी हजार वर्ष की स्थिति वाले नरयिक के रूप में जन्म लेगी।"
नए णं मा रेबई गाहावड़णी महासयएणं समणोबासरणं एवं वुत्ता समाणी पर्व बयासी--"? णं मम महामयए समणोवासए हीणे णं मम महामया समणोवासए अवज्झाया णं अहं महामपरणं ममणोवासएणं गाइ णं अहं केणवि कुमारणं मारिजिस्मामि त्ति कटु भीया नया तसिया उठिवग्गा संआय. 'भया मणियं मणिय पच्चोसक्कड़ पच्चोमक्कित्ता जेणेव मए गिहे तेणेष उवा. गफछाइ, उवागच्छित्ता ओहय जामियाइ । नर णं सा रेवई गाहावड़णी अंना सत्तरत्तस्स अलसपणं वाहिणा अभिभूया अष्टदुहवमहा कालमासे फालं किया इमीसे रयणप्पभाए पुखबीए लोलुयच्चुप पारण चउरामीडयासमहरमट्टिइपसु रह. एसुरइयत्ताए उबवण्णा ।"
अर्थ-यह बात सुन कर रेवती को विचार हमा कि “निश्चय ही महाशतक मामणोपासक मन पर रुष्ट हो गए हैं। उनके मन में मेरे प्रति हीनभाव हो गए हैं। में उन्हें अच्छी नहीं लगती । अतः मैं नहीं जानती कि वे मुझे न जाने किस कुमौत से मारेंगे?" ऐसा सोच कर वह मयभीत हो गई, नरक बुलों के प्रवण से अद्विग्न हो गई और पास को प्राप्त हुई। वह धीरे-धीरे पोषधशाला से निकल कर अपने स्थान पर आई, तपा आतध्यान करने लगी। सातवें दिन अलसक-विचिका से पीड़ित होकर आतध्यान करती हुई असमाधिपूर्वक मर कर रत्नप्रमा पृथ्वी के लोलपम्य मरकाबास में, चौरासी हजार वर्ष की स्थिति वाले नरयिक के रूप में उत्पन्न हो । दिवेबम- नोवाति नापस्तावहारो न च पश्यते ।
बाबाशपंऽलसी मूतस्तेन सोडलसकः स्मृतः ।।